रविवार, 27 फ़रवरी 2011

मुखियाजी

भैयाजी
कल मेरा ऑपरेशन है
मुखियाजी की सुन आवाज मैं
अतीत से वर्तमान में आया
मैंने उनको बैठक मैं में बिठाया
कुछ व्यस्तता ऐसी थी की
कई दिनों से उनसे
मुलाकात हो नहीं पाया

वस्तुतः मुखियाजी एक युवा वृद्ध थे
पूरी जीवटता व तन्मयता से
सुरक्षा गार्ड का कार्य करते हुए
खुद्दारी से काफी दिनों से हमारे
आवास के पास ही रह रहे थे
कई वर्षों से गाँव को छोड़
शहर में ही बस गए थे
गाँव घर की चर्चा आने पर
एकाएक उदास हो जाते थे
मानो किसी ने रख दिया हो
उनकी दुखती राग पर हाथ
अचानक छोड़ हमारा साथ
बैठक से उदास चले जाते थे
मोहल्लेवालों के हर सुख दुःख में
बड़े ही लगन से अपनी
उपस्थिति दर्ज कराते थे
न जाने कौन सा अनकहा दर्द
उन्हें अनवरत सालता था
जिससे उन्हें गाँव से दूर
रहना ही भाता था
माँ की याद आने पर अचानक
ही उदास हो जाते थे
परिवार और बच्चो के बारे में
सोच अतीत में खो जाते थे
कुल मिलकर अपने आप में
एक अजीम सख्सियास थे
मानवीय सभ्यता और भारतीय
संस्कृति को समेटे हमें
अत्यंत ही प्रिय लगते थे

इधर कई दिनों से उनका
स्वास्थ्य ख़राब चल रहा था
कभी पेट तो कभी पैर
परेशान किया करता था
मेरे भी काफी दावा आदि करने पर
परेशानी कम नहीं हो रही थी
जाँच कराने पर डाक्टर ने
आंत उतरने की बीमारी कह
ऑपरेशन की सलाह दी थी
किसी तरह जुगाड़ कर उनके सुपरविजर ने
उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया
कुछ आर्थिक सहयोग हमने भी कर दिया

ऑपरेशन के उपरांत उनका पहला फोन
मेरे पास ऑफिस में आया
भैया आइबा न का हमके देखे
कहते उनका आवाज भर्राया
शाम को ऑफिस से सीधे मैं अस्पताल गया
देख बिस्तर पर एक छोटे बच्चे के साथ
उनको खेलते मेरा दिल भर आया
मुझे देख उनकी बाछें खिल गयी
आ गए भैया कहते
उनकी आंखे भर गयी

कितने लोग यहाँ भर्ती है
सबको नित्य कितने ही
देखने आते होगें
साथ में फल मेवे और
मिठाइयाँ भी साथ लाते होंगे
पर यहाँ कौन आया होगा
कौन इन्हे भाया होगा
घरवालों को तो पता ही नहीं होगा
कि मुखियाजी ने ऑपरेशन करवाया होगा

दुसरे बिस्तरों पर देख भीड़ क्या
इनका दिल भर नहीं आया होगा
पर अपने मिलनसारिता से उन्होंने
पूरे वार्ड को अपना परिवार बना डाला था
मुझे देख आँखों के कोरो से
ढुलकते आंसुओं ने
उनकी सारी व्यथा कह डाला था
दिल के अनकहे दर्द को
दिल में ही छिपा लिया था
सभी लोगो से एक अंजान
रिश्ता बना लिया था
दूसरों के बच्चे दादा दादा कह
उनकी गोद में उछलते थे
मिलाजुला कर सभी
उनका ख्याल रखते थे

पर इस सच्चाई से भी सभी परिचित थे
कि गैर रख ले कितना भी ख्याल
पर अपने तो अपने ही होते है
इस बात को मुझे देख
उनकी भाव भंगिमाओं ने दर्शाया
जिसने मुझे मेरे कुछ और
दायित्वों का अहसास कराया
कुछ देर बैठ वहां धीरे से
उनकी मुठ्ठी में कुछ थमाया
पुनः इस अपरिभाषित रिश्तों के
बारे में सोचते थके कदमो और
भरी मन से मैं घर लौट आया

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

दिखेगा आज भी बसंत परिपूर्ण

पप्पू तनी जल्दी से
नहाय धोई लो
पीला पजामा कुरता बकस मा रखा है
उसे पहिन लो
तनी खेतन से सरसों कई
पियरका फूल लई आयों
मंदिर चले के बा
पंडित जी का बुलावा आवा रहा
पूजन क मुहूरत निकल जइये
एहिलिये जल्दी करयो

सुबह सुबह माँ के इस
अनुनय से निद्रा भंग हुई
सुबह संग हुई
जागने पर देखा तो न माँ थी
न माँ का कोई अनुनय
रसोई से पत्नी करती रिक्की से विनय
बाबू जल्दी से तैयार हो लो
स्कूल की बस आ गयी होगी
यह टिफिन बैग में रख लो
अरे आप भी न जल्दी उठिए
ऑफिस नहीं जाना है क्या
चलिए तैयार होइए
मैंने कहा प्रिये क्यों उठा दिया
एक प्यारे सपने से क्यों जगा दिया
अपना प्यारा बचपन और बचपन का
प्यारा बसंत देख रहा था
उसमे मैं तुमको रीतिकालीन
नायिका के रूप में तलाश रहा था
कहते पुनः अपने अतीत के
स्वप्न में खो गया था

बसन्त ने देखे है कितने आयाम
त्रेतायुगीन बसंत था जहाँ निष्काम
वही द्वापर के बसंत में व्याप्त थी
चिरंतन सत्य और कर्मयोग से
पूरित कृष्ण की योगलीला
गोपियों की वेदना व विरहपिदा
मगध्कालीन बसंत बसंतसेना
और बसंतोत्सव से था परिपूर्ण
जिससे आज का बसंत है बेशक अपूर्ण
कालांतर में बसंत को सूर के बाद
पद्माकर और केशवदास ने गहनता से देखा
महादेवी पन्त आदि ने तो इसकी
खींच दी जीवनरेखा
भ्रमर का गुंजन कोयल की कूक
पनघट की नायिका को देखते हम मूक
वेदना विरही नायिका की
उठाती हिय में हूक
उन्माद में डूबी प्रेयसी
महकती फूलो का गुच्छा
झर झर बहते हुए झरने
कल कल करती नदियाँ
दृश्य था मनोरम कितना अच्छा
पहाड़ो का सौंदर्य अप्रितम
आमंत्रण देती अमावस की रातें भी तम
बासंती बयार कर देती
प्रेमियों को मदहोश
परागित पंखुडिया और सौरभ की
भीनी सुगंध उड़ाती हमारे होश
बृक्षों से गिरते पत्तों की लड़ियाँ
पुनः जीवन को जीवंत करती
नन्हे फूल और कोमल पत्तियां

एकबारगी हमें लगता है
हमारे संपन्न प्यारे अतीत का सौरभ बसंत
नित पा रहा है कंक्रीट के
जंगलों में असमय अपना अंत
ध्यान से परखने पर हम पाते है
बसंत की जीवन्तता को
दुसरे रूपों में देखते है
परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत सत्य है
बसंत भी इससे अछूता नहीं है
बसंत आज भी विद्यमान है
उसका पूर्ण सौंदर्य आज भी विराजमान है
फर्क बस इतना है कि
इसके प्रारूप बदल गए है
नए प्रतिमान सज रहे है
आओ देखे बसंत के बदलते
रूपों और प्रतिमानों को
इसके नए पैमाने को
स्कूल कि बजते ही बेल
तमाम बच्चों के आह्लादित मुखमंडल
और खुशियों से भरी रेलमरेल
हर बच्चा एक फूल और स्कूल
उपवन सा दिखता है
बच्चों से भरा आंगन
मधुवन सा दिखता है
साथही बसंत कालेज के परिसरों में
भी सिद्दत से दिखता है
जो हमें अनायास ही खिचता है
जहाँ पर प्रकृति ने पहाड़ो झरनों
व बागों से बासंती उल्लास को
बाहर निकाल बिखेरा है यैवन का
सौंदर्य अनुपम
कराती शोख चंचल अदाओ के दर्शन
मल्तिकोम्प्लेक्स में युवाओं के मेले
रंगीन माडर्न ड्रेस्सों से घिरे
चाट चाव्मिन और स्नेक्स के ठेले
आर्चिज गैलेरी में दिखते युवा
बसंत के पर्याय को चुनते
तमाम मोहक कार्डो पर इठलाते झूमते
बड़े बड़े पेंटिंग के रूप में
ड्र्यिंग रूम में सजते
आज भी प्रयासरत दीखता है बसंत
अपना अस्तित्वा बचाते
बसंत कहीं खोया नहीं है
पर परिवर्तन कि शाश्वत अवधारणा
से भी अछूता नहीं है
सौंदर्य उर्जा और नूतन
ताजगी से परिपूर्ण
दिखेगा आज भी बसंत संपूर्ण

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

अधूरा घोंसला

अपने
घोसले का निर्माण
करने में तल्लीन नर
एक एक तिनका चुन चुन कर लाता
मादा गौरैया के चोच में थमाता
पुनः और तिनके की तलाश में
सुदूर जंगलों में चला जाता
मादा उन तिनको को
घोसले में सजाती

अपने प्रियतम को प्यार से निहारती
सुखद भविष्य की कल्पना से ओत प्रोत
प्यार से उसकी बलैया लेती
अनवरत श्रम से थकने पर
उसे अपने नाजुक पंखों से हवा कर
एक मादक अदा से इठलाती
पुनः आने वाले जीव के
बारे में सोच सपनों में खो जाती
कुछ तिनका इस प्रक्रिया में
नीचे गिर गया था
घोसला बनाने के ही करीब था
मादा ने कहा प्रियतम तुम थक गए हो
इतना दूर न जाकर
क्यों नहीं इन गिरे तिनके को लाते हो
व्यर्थ में पसीना अब क्यों बहाते हो
अब तो घोसला भी तैयार है
देखो कितनी अच्छी बसंती बयार है
आओ जल्दी से इसे पूरा करे
फिर आराम से बैठ अपने
घोसले में भोजन करें

थक चुके नर ने
पुनः साहस जुटाया
अपनी मादा को प्यार से पुचकाया
उन गिरे तिनको को
एक एक कर लाने लगा
निर्मम कल भी वहां धीरे से
आहट देने लगा
एक बिल्ली की निगाह उस
बेसुध सपने में खोये नर पर पड़ी
उसके बांछे खिल गयी
पंजे में दबोच वह उसे ले चली
मादा पूरे दम से चिल्लाते
उसके पीछे दौड़ पड़ी

पल में ही देख
सारे सपने धूसरित
आकान्छाये अपूरित
बेदम नर ने उसे समझाया
उस होनी को कौन रोक सकता है
जो ईश्वर को है भाया
गर्भ में पल रहे हमारे
भविष्य को बचाओ
उसी के सहारे अब जीवन सजाओ
मुझे बचाने की चेष्टा
मत करो अनायास
जानती ही हो बेकार होंगे
तुम्हारे सभी प्रयास
तुम्हारे बचने से कम से कम
हमारा अस्तित्व तो बचेगा
बाकी न्याय इसका तो ईश्वर ही करेगा
प्रिये अब मेरी मौत तो करीब है
क्या करे शायद यही हमारा नसीब है
कहते हुए नर ने
वही तोड़ दिया दम
यह देख मादा के
हताश रुक गए कदम
अपने आपको समझाते
अपने पति की याद और पहचान को
अपने गर्भ में छिपाते
न चाहते हुए भी अज्ञात भविष्य के
नए ताने बाने बुनते
अस्थियों के नाम पर उसे
जो कुछ मिला वहां
ले चल पड़ी अपने अधूरे घोसले को
उसके प्रियतम की
यादे शेष थी जहाँ

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

सुबह होने पर

जियावन की तेज आवाज से
सहसा निद्रा भंग हुई
सामने खिड़की से उदीयमान सूरज से
ऑंखें चार चौबंद हुई
बाहर वह धरमू पर
जोर जोर से चिल्ला रहा था
पानी पी पी कर गालियों की
बौछार किये जा रहा था
ऑंखें मलते हुए मैं बाहर आया
देख नजारा वहां का मैं घबराया
धरमू का जेनेरटर जियावन के
दरवाजे पर धंस गया था
बेटी का विवाह नजदीक था
दुआर ख़राब होने की जियावन
दुहाई दिए जा रहा था
किसी तरह मैंने बीच बचाव कर
घटना को दुर्घटना होने से बचाया
समझा बुझा कर
मामले को शांत कराया

आज जियावन की बेटी
उर्मिला का विवाह है
सहेलियों ने जीभर कर
उसका श्रृंगार किया है
सभी व्यस्त है
बारात की अगवानी में
जियावन का भरपूर प्रयास की
रहे न कोई कोर कसर
बारातियों की अगवानी में

रात्रि का दूसरा पहर
नाचते गाते बारात पहुच ही
रही थी दरवाजे पर
तभी एकाएक आंधी के साथ
पानी का भी हो गया प्रकोप
बिजली भी हो गयी
तबियत से गोल
किसी ने कहा अरे
पास ही में तो धरमू है
उससे कहो लगा दे जेनेरटर
किसी ने कहा कहाँ से लायेगा
वो इतनी रत में ओपेरटर
जियावन मुहँ लटकाए
हो गया था निराश
उसकी तो टूट चुकी थी पूरी आस
हताश वह सोचता हो बेचैन
अब कैसे वह
धरमू से मिलाये नैन
अभी दो दिन पहले ही तो
उसका जीना हराम कर दिया था
बिना बात का ही
तिल का ताड़ बना दिया था
उन गालियों से आहत
धरमू अपनी बखरी में लेटा था
उसे उस विवाह का
निमंत्रण नहीं था

दूर से धरमू ने
सुनी जब जिक्जिक
सोचने लगा वो
कैसी है ये किचकिच
निरापद वो जियावन के
दुआर पर तेज कदमो से गया
देख मामला तुरंत
ले दो लोगो को जेनरेटर ले आया
स्वयं ही बन ओपेरटर
पूरी रात उसने जेनेरटर चलाया

सुबह होने पर
बारात बिदा होने पर
जियावन और धरमू
एक दुसरे को देख अनदेखा करते रहे
अचानक दौड़ एक दुसरे की ओर
लग एक दुसरे के गले
अपनी सारी व्यथा
आँखों ही आँखों में कहते रहे
घंटो रोते रहे
उनके चहरे बिना कुछ कहे
बहुत कुछ कहते रहे