मंगलवार, 30 जुलाई 2013

Lamahi

कभी घिस्सू और 
माधो का गाँव 
प्रेरणा स्रोत रहा था 
उपन्यास सम्राट की लेखनी का 
आज जगमगा रहा था 
पिछली  रात से घिस्सू 
और माधो के पोते 
बाल्टी और ब्रश लिए 
प्रेमचंद की कर्म स्थली पर 
रंग रोगन कर रहे थे 
गाँव की सड़को को ठीक ठाक 
करने में लगे थे 
उन्हें पता चला है कि 
मुंशीजी की पुण्यतिथि पर 
कुछ खास लोग आने वाले है 
उनके लिखे कुछ खास तोहफे 
लाने  वाले है 
हामिद का चचा जान  पोता 
जी की रमजान में तक़रीबन 
हर रोजा रहने का 
प्रयास कर रहा था 
बड़ी लगन से गाँव की  पगडंडियों 
पर मिट्टी डालने का कार्य कर रहा था 
साथ ही सोचता जा रहा था 
कि खुद न सही 
सरकार की इबादत से 
रहमतो की बरसात होगी 
शायद अब किसी दादी की 
चिमटे के अभाव में 
हाथ नहीं जलेगी 

धनिया की नतनी जो 
अब इसी गाँव में आकर 
बस गयी थी 
आज शाम को प्रस्तावित 
पूस की रात के मंचन की 
प्रतीक्षा  कर रही थी 
उसे लगा की शायद 
इसी बहाने उसकी नाना नानी 
व उनके जज्बातों से 
पुनः मुलाकात होगी 
अपनी तमाम शिकायते उनके साथ 
शेयर करने में उसे 
कितनी ख़ुशी होगी 

तभी  हूटरो की आवाज से 
वातावरण में गर्माहट  छा  गया 
तमाम सरकारी अमला अलर्ट हो गया 
पीछे हटो  पीछे  हटो  की 
आवाज ने सबको चौकाया 
कुछ लोग आये 
दीप जलाये 
नारियल फोड़े गए 
संभ्रांत से दीख रहे कुछ 
लोगो ने माइक पर 
भाषण भी दिया 
कैमरे की फ्लश लैटो से 
वातावरण जगमगाया 
बाद उसके जैम कर नाश्ता किया 
पूरा गाँव अवाक् यह सब 
ठगा सा  ललचाई  नज़रों से 
नाश्ते  की ओर देखता रहा 

जींस और पेंट जैसे आधुनिक 
पहनावे में आये लोगो ने 
अपनी वैन में जाकर 
धोती और कुरता पहना 
नुक्कड़ नाटको की तर्ज पर 
पता नहीं क्या क्या नौटंकी किया 
थोड़ी देर में सब समेट 
एक दिवास्वप्न की तर्ज पर 
वापस चले गए 
घिस्सू माधो और धनिया के परिजन 
अपने पूर्वजो के साथ हो रहे 
इस मजाक को देखकर 
सकते में रह गए 

सोच रहे थे की 
उनके दादा दादियों की 
क्रन्तिकारी कहानियों के द्वारा 
मुंशीजी के सामाजिक दर्शन पर 
आज भी लोग सिर्फ  रोटिया 
सेक रहे है 
सरकारी अमले भी बस 
खानापूर्ति में लगे है 
हमारा तो सफ़र जहा से 
मुंशीजी ने प्रारंभ किया था 
वह से हमें सामाजिक 
चेतना की दरकार में 
और आगे जाना था 
पर अफ़सोस हम आज भी वही पड़े है 
अपनी मुठ्ठी भर जमीन पर 
खेती कर गुजर बसर 
कर रहे है 

कहा तो उन्हें एक नए 
सुबह की उम्मीद थी 
पर इस फीकी शाम ने 
उनकी आशाओ पर 
एक बार पुनः 
पानी फेर दी  थी 

निर्मेश 

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

कफ़न

रीतेश  
अपनी  फ्लाइट 
आज कैंसिल करा दो 
मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही 
हो सके तो कुछ और दिन 
साथ रह लो 
कहते खासते  खासते 
मिश्राजी की पसली चल रही थी 
बिजली नहीं होने से 
मिश्रीईन पास बैठी 
पंखा  हिला रही थी 

शुन्य   में काफी 
देर तक देखते 
अनायास कुछ सोचते 
हिम्मत जुटा कर रीतेश बोल 
पापा कैसे बताये 
कि  किस तरह हमने 
पत्नी और बच्चे के साथ 
पंद्रह दिन यहाँ बिताया 
पूरे इस प्रवास ने हमें 
कितना सताया 
कहा एक  ओर अमेरका का 
विलासित  जीवन 
कहाँ यह गाँव का 
वीरान मधुबन 
फिर भी किसी तरह मै 
यहाँ एडजस्ट कर रहा था 
आपकी सेवा कर अपना फर्ज 
पूरा कर रहा था 
मगर मेरे बॉस ने मेरी छुट्टी 
आगे मंजूर नहीं की है 
हमें तुरंत वापस आने की 
वार्निग दी है 
अतः मुझे आज ही 
जाना पड़ेगा 
अपने  भविष्य  हेतु 
यह कदम उठाना ही प होगा 

बाहर पूरा परिवार 
ऑटो में बैठ चूका था 
वह भी चलने को लगभग तैयार था 
माँ यह लो कुछ  रुपये रख लेना 
पापा यदि नहि  रहे तो 
तिख्ती और कफ़न का 
इंतजाम कर लेना 
कहते चौकी पर जैसे पैसा रखा 
उसे रोकते हुए मिश्राजी ने कहा 
बचवा ई बनारस है 
यहाँ लावारिसो को भी 
कफ़न मिल जाता है
दिन हिनो का भी लाश 
शान से 
जल जाता है 
अमेरका नहीं कि  जहाँ 
व्यक्ति तुम्हारी तरह इतना 
प्रोफेशनल हो जाता है 
कि अपने बाप की चिता को 
आग नहीं दे पाता है 
नजदीकी रिश्ते को भी 
पैसे से तौलता है 
मानवीय रिश्ते भी जहाँ 
इस कदर बिकते है 
कि रक्त पानी से सस्ते 
लगते है 

लो इस पैसे को 
अपने पास रख लेना 
मेरी चिंता छोड़  बेटा 
अपने लिए एडवांस में 
एक कफ़न खरीद लेना 
तुमने तो कम से कम इतना 
मेरे बारे में सोचा 
तुम्हारे  बेटे बेशक 
इसे खरीदने में करेंगे लोचा 
तुन्हारे लिए उन्हें कफ़न 
खरीदने की भी फुरसत 
नहीं होगी 
आखिर तो तुम्हारा बाप हू 
हमसे ज्यादा  बेटा 
तुम्हारी चिंता 
किसे होगी 

निर्मेश 

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मौज

हाथो  में बड़ी बड़ी 
गत्ते की  ताख्तिया  लिए 
जिस  पर मन को  पसीजते 
नारे   लिखे
 क्षेत्रीय राहतकर्मियों का नेत्रित्व 
मोहल्ले के मुन्ना पहलवान 
चिल्ला चिल्ला कर 
कर  रहे थे 
लोगो से अनाज के साथ साथ 
पैसे  ईकठा करते 
मेरे भी रस्ते में वे पड़े 
जोर जोर से तकरीबन 
रोते  हुए बोले 
भैया बड़ा जुलुम होई गवा 
हुवन उत्तराखंड मा 
प्रलय आ गवा 
बहुतन मरिन गए 
बहुतन अबही हुवन फसे है 
उन्हींन का बचावे औ  सहायता  वदे 
हम सब निकल पड़े है 
आपो पुण्य कमाई 
कछु सहयोग करी 

मै  भी  भावनाओ के आवेग में 
तुरन्त  ताव  खा  गया 
पांच सौ का एक नोट 
उनके दान पात्र में डाल दिया 
एक बहुत ही बड़ा नेक कार्य 
सम्पादित करने का सुख 
सहसा ही पा गया 

शाम को लौटती बस से 
घरवापसी के लिए जैसे ही 
बस अड्डे उतरा 
पास के मधुशाला के निकट 
मुन्ना पहलवान को 
जमीन पर लेटे देखा 
मुझे लगा हे  भगवान 
ये क्या हो गया 
कही उत्तरा खन्दियन  की
सेवा करते करते 
ई शहीद तो नहीं हो गया 

पास जाने पर उसके 
मुंह से एक और जहाँ 
देशी  शराब की बदबू  आयी  
वही पास में उसके और साथियों की 
नशे में टुन्न देह पायी 

मुझे अब कुछ कुछ 
समझ में आ रहा था 
अपने ठगे जाने का अहसास 
अनायास हो रहा था 
उनमे से एक को कुछ 
होश में देख मैंने पूछा 

अरे भैया ई का होइ रहा 
लड़खड़ाते जुबान में वह बोला 
साहिब ई सब त लगा रहित है 
हमअन के भी राहत क 
जरूरत है 
हुवन उत्तराखंड में तो 
बहुत लोग रहत पहुचावत है 
हमअन  त  भी भूख  अऊ गरीबी 
मा मरत  हई 
पर हमका के पूछत है 
हमसब सोचा की चलेव 
ई बहती गंगा मा हमअन  भी 
हाथ धोई लेव 
बहुतै दिनन बाद 
दारू पिया अऊ मछली खावा है 
कल के वादे भी कछु  बचावा  है 

मैंने पूछा 
परसों का क्या होगा 
बोल साहेब 
इतना बढ़िया पैसा उतर आवा है 
कि कल परसों तो दूर 
नरसो  तरसो के बाद का भी 
जुगाड़ होई गवा है 
ओकरे बाद देखा जायेगा 
सबकुछ ठीकठाक  रहा 
प्रकृति पर हमअन क अत्याचार 
ऐसे ही जारी रहा 
त अऊर जगह भी जल्दिये 
बाढ औ प्रलय आयी 
संग अपने हमअन क भी 
मौज साथ लाई 

निर्मेश