सोमवार, 30 दिसंबर 2013

गोधूलि आज की शान्त दीखती

गोधूलि  आज की शान्त दीखती
विषम वेदना बनी अतीत अहि
ले नूतन संकल्पो को हिय में
नूतन वर्ष आगमनित प्रतीत है

नभचर युवा और उनके शिशु
खुली हवा में लेंगे साँस
नूतन बल अब होगा संचारित
जिनके चलते थे स्वाँस प्रस्वास

ओंस बिंदु कल के प्रभात के
कोमल पत्तों पर ढुलकेगे
समनित सीप बिंदु मोती बन
हमको भ्रम में फिर डालेंगे

भये भोर जो कमल पुंज
थे मूंद लिया करते नयन
आतुर स्वागत कर नए वर्ष का
तभी करेंगे कल वो शयन

वर्ष पर्यन्त सफ़र कर सूरज
थक कर हो गया है अस्त
खग समूह उड़ चले नीड़ को
कल के स्वप्न में है वो मस्त

मलय पवन से सरोबार
पनघट फिर से होगे गुलजार
नूतन परिधानो में सजी
प्रकृति धरा का करे श्रृंगार

मृग शावक सरपट दौड़ चले
व्याघ्र साथ करता प्रस्थान
नए भास्कर की किरणो ने
दिया उन्हें है अभयदान

प्रकटी जीवरूप में आत्मा
कहलाता है यही वो जीवन
रूठ जीव से त्याग तनो को
प्रारूप आत्मा का है मारण

असत अहंकार और पाखंड का
जीवन से कर सदा त्याग
सुबरन सरिस इस पावन तन का
लक्ष्य नहीं है भोग विलास

इस तन में तप कि ऊर्जा भर
आओं ले एक नया संकल्प
सुर दुर्लभ इस तन का प्यारे
है और नहीं कोई विकल्प

सत्य धर्म कर्त्तव्य परायणता
ये दूर हो चुके हमसे आदर्श
पुनः प्रतिष्ठित करना होगा
यदी धरा को बनना स्वर्ग

बैठ गगन में ऋषिमंडल
करते है सामूहिक विमर्श
आसन्न सभी  विभीषिकाओं पर
दे रहे है अपने परामर्श

जब दस्तक देती पल में मौत
तब जीवन मूल्य समझ में आता
नूतन रवि की कोमल किरणे
सच कहो किसे है नहि भाता

संकट इस  युग का भीषण
निज आकांक्षाओं की त्वरित पूर्ति
आदर्श त्याग हम रामकृष्ण की
उनकी बैठाते नित नई मूर्ति

अति आकाँक्षाओं की मृगतृष्णा से
आओं विलग करे अपने को
अपने अतीत के आदर्शों से
पूर्ण करे निज सपने को

नव वर्ष मंगलमय हो

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

चचा

सहसा
ताड़ ताड़ की आवाज ने
भोर के सन्नाटे को चीर दिया था
मैं मॉर्निंग वाक हेतु
बी एच यू  गेट पर लगभग
पहुच चुका था

हाँ हाँ करते
जैसे ही करीब पहुँचा
तब तक हाथ के साथ
दस पाँच लात भी उस
रिक्शेवाले को पड़ चुके थे
उनमे से एक युवक
अपनी कमीज की बांह चढ़ाते हुए
मेरी ओर  देखते बोला
पापा की असपताल से छुट्टी होइ चुकी है
उनका घर ले जायेका है
जल्दी से दवा चालू करेका है
साले को कब से दूर से
ही आवाज दे रहे है
रोक रोक ही नहीं रहा है
अरे सवारी नाही ढोये का है तो
काहे रिक्शा निकाले है

रिक्शावाला
कुहनी में मुँह  छिपाये
अपना रिक्शा छोड़
जमीन पर बैठ चुका था
फटे शाल से बह रहे खून को
पोछने का असफल
प्रयास कर रहा था
मैंने उन नवयुवको को
धैर्य की नसीहत देते हुए
ऐसा करने से डाँटते हुए रोका
साथ ही निराला के उस पात्र को
उठाने में लग गया

लगभग सत्तर साल का
वह एक कृशकाय वृद्ध था
विवश बेशक विशेष
परिस्थितियों में ही वह
रिक्शा चला रहा होगा
वरना इस पूस की ठण्ड में
वह भी तमाम कुलीनों की तरह
रजाई में पड़ा
गरम चाय के साथ चुडा मटर  का
आनंद ले रहा होता

इतना तो समझ इन युवकों में
होनी ही चाहिए थी
हो सकता है सवारी ढोते ढोते
वह थक गया होगा
याकि उम्र के इस पड़ाव पर
निकला तो होगा कमाने
पर ठण्ड व कमजोरी से निराश
घर वापस जा रहा होगा

पर धैर्यहीन आज की पीढ़ी
जो न्यूनतम व्यय पर
अधिकतम  सुविधा की आदी
होती जा रही है
कम समय में ही सब कुछ
पा लेने की जिजीविषिका
पाले जा रही है
फलस्वरूप
मानवीय मूल्यों से दूर होकर
अनवरत खोखली होती जा रही है
उनके पास इतना समय कहाँ
इतना सोचने का
पारिवारिक और सामाजिक
विवेक का

मैंने पूछा
क्या बात है चचा
अवाक्  शून्य में देखते हुए पुनः
वह मेरी ओर देख रहा था
जैसे उसे कुछ सुनाई
नहीं दे रहा था
पुनः मैंने जरा जोर से  पूछा
पुनः उसे अवाक् पाया
कोई प्रतिक्रिया न देख
उसके करीब गया
एकबारगी मुझे अपने पास
आता देख वह डर गया
शायद उन युवको का करीबी जान
भय से सिहर गया

पर शीघ्र जैसे ही उसने
दया के साथ सहानुभूति की
कोमल स्पर्श पायी
मुहँ से रक्त के साथ
उसकी बूढी आँखे बह आयी

बोला भइया उमर होइ गवा है
पिछले छह महीना से
हमका तनी कम सुनावत है
पर परसोईयां से लागत आ
कि बहुते कम सुनाता
एहि पाछे हमका न सुनावा
नाही त भइया कमवही वदे न ई
ठण्ड मा निकलल हई

छोड़ी
चली आयी कहाँ चली

चचा हमका नाही
उन सबका जायेका है
कहते जैसे ही
पलट कर देखा
संवेदनहीन उन देश के पुरोधों को
बहरे रिक्शेवाले चचा को छोड़
अपने पिता के साथ
गायब पाया
निर्मेष

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

बारात


मैंने देखा उसे
एक बारात में ज्योति कलश
ढोते हुए
साथ ही बाये हाथ में
अपने नवजात बच्चे को भी
सम्भाले हुए

उसके पीछे शायद
उसकी दस वर्षीया बेटी
ज्योतिकलश सर पर लिए
कदम  से कदम मिला कर
बारात में चल रही थी
बड़े ही हसरत से
पूरे बारात को निहार रही थी
शायद अपने भी प्रियतम के
बारात के बारे में ही
सोच रही थी
बगल
की लाइन में
उसका पति भी एक हाथ से
ज्योति कलश को थामे
दूसरे से अपने छोटे बच्चे को सम्भाले
पैदल चल रहा था

बारात से  ध्यान हटा
मैं  अनवरत उनकी गतिविधियों का
अवलोकन करने लगा
उनके साथ ही साथ चलने का
प्रयास करने लगा

आपस में उनकी
बातचीत भी लगातार जारी थी
कल महाजन के आने की तैयारी  थी
आज की इस कमाई से
छुटका के बीमारी के समय
उधार लिए गए कर्ज के
मासिक ब्याज को चुकाने
की बारी  थी

मेरी भाव भंगिमा से
शायद उन्हें पता चल गया
कि मै उन्हें वाच कर रहा था
इसीलिए उनका बातचीत  अब
क्रमशः कम हो रहा था

बस इतना ही पता चला कि
इस बारात के बाद
उन्हें एक और बारात के लिए जाना है
उसके बाद ही खाने के लिए
अपने घर रवाना होना है

बारात लगते ही
उन बच्चों का ध्यान
सामने के सुस्वाद व्यंजनो
की ओर गयी
थीं
जिन्हे उनकी नज़ारे
एक चाहत के साथ
निहार रही थी

छुटके ने नजर बचा कर
अंदर जाने  का साहस किया
अबे मत जाओ
नाही त बहुत मार पड़ी
कहते
हुए   दूसरे ने उसे
डाट कर बाहर किया 
बाबू बतावत रहे कि
अब पाहिले वाला
जमाना नाही रहा
जब खाये पिये में
केउ
कुछ बोलत ना  रहा
अब लोगन के पल्ले
इतना पैसा त बढ़ि गवा है
पर पता नाही काहे
इन सबका दिल इतना
छोटा कइसे होइ गवा है

चल
कौनो बात नाही 
हमरो  घरै आज
कहत रहल माई
कि ऊ आलू के झोल के साथ 
ऊ पराठा बनाई

दूर से मै उनकी
बातचीत सुन रहा था
तभी मेजबान कुछ खास
व्यंजनो के साथ
सामने से गुजर रहा था
मैंने कहा भइया अगर
आप अन्यथा न ले
हम  भोजन के बदले में
चार प्लेट इसी को ले ले
उसने  हॅसते हुए हमें
मौन स्वीकृति दिया
मैं  उन्हें  लेकर
शीघ्रता से बाहर  आया

बड़े ही  हिम्मत के साथ
उन्होंने उसे किसी तरह लिया
खाते हुए उनका ज
हाँ
एक एक रोम तृप्त
होता दीख रहा था
मेरा मन भी एक
अज्ञात आनंद से
पूरित हो रहा था
समाज के एक वर्ग विशेष का
नेतृत्व करने के कारण
मै
भी  एक अपराधबोध से
अपने को
मुक्त पा  रहा था

निर्मेष