मंगलवार, 15 मई 2012
रिश्ते कि सच्चाई
निशंक के
असमय देहावसान के उपरांत
आज श्रद्धा पहली बार
मायके जाने के लिए
तैयार हो रही थी
बच्चो को स्कूल भेज कर
रह रह कर रो रही थी
अभी कितने ही दिन हुए थे
उसे इस घर में आये
पराये हो गए थे अपने
अपनों को हुए पराये
निशंक के अथाह
प्रेम के सागर में
पाँच वर्ष तक वह
डूबती उतराई रही
दो दो प्यारे बच्चो क़ी माँ
बन स्वाभिमान से
इतराई रही
काल ने कब दबे पाव
पता ही नहीं चला
घर में प्रवेश किया
एक वर्ष के भीतर ही
सास और ससुर का
उठ गया था साया
किसी तरह निशंक के साथ
अपनी गृहस्थी को सभाले
वह अहिस्ता आगे बढ़ती रही
तभी एक सड़क हादसे में
निशंक भी चल बसा
पता नहीं किस मनहूस क़ी नजर
उसके खेलते खाते बगिया में
आग लगा गया
किसी तरह बच्चो को देख
वह जीने का एक और हौसला
पालने लगी थी
वरना वक़्त ने उसको तोड़ने में
कोई कसर ही नहीं छोड़ी थी
याद था किस तरह भैया ने
उसे सीने से लगाते हुए
विह्वल हो उसे शीघ्र घर
आने के लिए बोला था
दिलासा देते हुए भाभी ने भी
उसे पैर फिराने के लिए
कहा था
उसी रस्म को पूरा करने हेतु
वह किसी तरह जैसे ही मायके पहुंची
काल बेल दबाने के लिए
जैसे ही उद्यत हुई
घर के अन्दर से
भाभी कि आवाज आई
आज ही मुझे भी अपनी मम्मी को
देखने घर जाना था
तो इसी दिन इन महारानी को भी
मायके आना था
अपना तो सब कुछ लुटवा ही चुकी है
भैया ने भी आगे जोड़ा कि
अब पता नहीं हमारा क्या
करने पर तुली है
कितने दिनों से अपनी कार
बदलना चाह रहे है
पर सफल नहीं हो पा रहे है
हम तो वैसे ही इस कदर
तंगहाली में चल रहे है
पता नहीं कुछ मांग बैठी तो
हम क्या कहेगे
इसके बाद श्रद्धा कुछ और
सुनने का सहस नहीं कर पाई
भ्रम में ही सही
टूटते रिश्ते को बचाने हेतु
अपने घर वापस चली आयी
भरभराते आंसुओं को
पलकों में ही रोका
भैया को फोन कर बोला
आपने कितने प्रेम से बुलाया था
पर क्या करे मेरी भी तबियत
अभी ठीक नहीं है
सोनू भी बीमार चल रहा
उसको भी कल से आंव पड़ रही है
वैसे आपको परेशान
होने क़ी जरूरत नहीं
देखती हू जैसे ही समय मिलेगा
मै दो मिनट के लिए ही सही
आप सबकी मर्यादा हेतु
घर आ जाउंगी
उस दिन भाभी भी काफी दुखी थी
उनसे भी कहियेगा
मेरे लिए कदापि परेशान न हो
इन रिश्ते कि सच्चाई के बीच
जो भी हो इस जहर को
मै ही पीउंगी
अपने बच्चो कि खातिर
मै तो जीऊँगी ही
जीऊँगी
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