मंगलवार, 14 अगस्त 2012

मेरी अमरनाथ यात्रा


अपने परमप्रिय
राजकुमारजी के अहवाहन पर
छोटू और रामजी के साथ
मै निकल पड़ा
बाबा अमरनाथ क़ी यात्रा पर
देखने आस्था का सैलाब
जहाँ भक्ति क़ी गंगा का
बह रहा था प्रवाह अविरल अबाध
कशी से जम्मू व पुनः
जम्मू से पहलगाम
जहाँ जमीं को छू रहा था
निर्मल साफ असमान
बर्फ क़ी श्वेत चादर लपेटे
प्रकृति कर रही थी मानो
हमारा अभिनन्दन
वर्ष बिन्दुओं को अंचल में भरे
बादलो के समूह कर रहे थे
हमारा स्वागतम

क़ानूनी औपचारिकताओं के
उपरांत  बाबा धाम तक क़ी
३६ किमी क़ी चढ़ाई
चंदंबदी से जब हुई प्रारंभ
चरो और गूँज रहा था
बाबा का जयघोष बम बम
हिल गया था तन का रोम रोम
देख पिस्सू टॉप क़ी चढ़ाई दुर्गम
पर वह ऋ आस्था क्या दृश्य था मनोरम
कही दीखता था व्यक्ति का विश्वास
तो कही जय भोले के उदघोष से
ही किसी का चल रहा था
स्वास प्रश्वास

अकस्मात हो गाये हम
स्तब्ध ऊपर से आती देख दो लाश
मगर भक्तो के अविचल समूह
करते बम बम भोले का जयघोष
आगे बढ़ रहा था अनिमेष
इस दुरूह चढ़ाई के बाद
एक स्वर्ग सा दृश्य दिखा मनोरम
पाता चला यही है शेषनाग स्वर्गाश्रम
विशालतम पर्वत श्रृखलाओं के मध्य
गहरे हरे रंग का सरोवर
दूर तक फैली शेषनाग
झील झर झर
लगा जैसे प्रकृति ने रख दी है
अपनी  सुन्दरता यहाँ निचोड़कर

भाव विभोर मन वह
कुछ पल ठहर जनि को व्यग्र
दिखा पर साथियों के साथ को मै
वचन वद्ध था
आगे शिविर में लेकर रात्रि विश्राम
दूसरे दिन पंचतरणी क़ी ओर
चल पड़ा बीच बीच में
करते हुए आराम

आगे बर्फ के विशालतम
ढलुआ ग्लेशियरों पर चलते हुए
पल पल मृत्यु से साक्षात्कार करते हुए
दृढ विश्वास और असीम
आस्था के वशीभूत
अधीर मन आगे बढ़ता रहा
आखिर पञ्चतरणी के जल से
आचामनित हो किया तन में
एक नयी उर्जा का अहसास लगा

सफल हो रहा था
हमारा ये प्रवास
बीच बीच में लंगर तमाम चल रहे थे
जो यात्रियों क़ी सेवा कर
अपने ही ढंग से पुण्य कमा रहे थे
हमने भी वह नाश्ता कर
एक चाय पिया
पञ्च तरणी से विदा लेकर
मुख्य बाबा धाम को चल दिया
दो दो फुट के गहरे
संकरे कंकरीले और पथरीले
ऊंची पहाड़ी रास्ते पर
रखते हुए डग
कट रहे थे एक एक पग
उसीमे एक ओर जहाँ
चल रही थी घुड़सवारों क़ी
दो दो लडिया
वही निर्बाध पैदल के साथ
चल रही थी तमाम पालकियां
एक ओर जहाँ पर्वतों क़ी
विशाल ऊंचाइया
दूसरी ओर मृत्य का अहवाहन
करती गहरी खाइयाँ

खैर किसी तरह बाबा बर्फानी का
करते हुए जयकारा
धाम में पहुँच गया
मेरा समूह सारा
धाम का विहंगम दृश्य देखकर
लगा इश्वर ने रख दी है
अपनी सर्वोत्तम कृतियाँ
यहाँ निचोड़कर

चारो ओर हिम्ग्लेशियर और
उसके मध्य हिमाच्छादित धाम
जहाँ हिम शिवलिंग के दर्शन हेतु
लगा हुआ था जाम
पूजन सामग्री और वक्ती टेंट से
पाता हुआ था धाम सारा
भीषण सर्दी को मात दे रही थी
बाबा का जयकारा
जैसे ही स्नान कर
दर्शन के निमित्त तैयार हुआ
एक अजीब शक्ति तन में
संचारित हुआ
लाइन में लगते ही हम पा गए
पवित्र चिरपरिचित कबूतरों के दर्शन
बाग बाग हो गया मन
प्रफुल्लित हो चला सारा तन
बाबा बर्फानी के दिव्य
दर्शन के उपरांत
क्रमशः शाम ढल रहा था
पर ८ बजे भी बाबा के दरबार में
सूर्य दर्शन दे रहा था
जब मौसम का मिजाज बिगड़ते देखा
हमने बाबा धाम में ही
रात्रि विश्राम का निर्णय लिया

साथ में लाये कुछ नाश्ते के बाद
सोने के निमित्त बर्फ पर ही बने
एक टेंट को हायर किया
दूसरी सुबह तैयार होकर
१४ किमी बालताल के
दुर्गमतम रास्ते से
बाबा को पुनः प्रणाम कर
विदा लिया

इस रास्ते क़ी भी
असंख्य कठिनाइयों और पीडाओं से
हमारा साक्षात्कार हुआ
पल पल पर मौत का
अहसास हुआ
मौत और जिन्दगी के इस
प्रायोजित खेल से सच मानिये
मेरा दिल बाग बाग हो गया
जिंदगी कितनी कीमती है
इस बात का अहसास हो गया

आज भी भोला मेरा मन
समझ नाही पाता
इतनी परेशानियों के बीच भी
हमें यह धाम क्यों है भाता
शायद इसका कारण
विज्ञानं पर आधारित हमारी
संस्कृत क़ी गहरी जड़े हो
जिस पर आस्था क़ी विजय हो
विज्ञानं पर आस्था का
अटल विश्वास हो
या राष्ट्रीयता से जोड़ता
विज्ञानं पर आस्था का प्रभाव हो
जिसे बस और केवल बस
प्रत्यक्ष ही महसूस किया जा सकता है
कंक्रीट के जंगलो में बैठ कर
प्राकृत के इस अनूठे उपवन
भय और भक्ति के संगम का
विश्लेषण नहीं किया
जा सकता है

सामान्य सी मांग

पापा पापा
पिछली बार आपने वो
बिजलीवाली रेलगाड़ी हमको
दिलाने को कहा था
कहते कहते सोनू पापा को
एक खिलौने क़ी दुकान पर
बड़ी आशा से लेकर
खड़ा हो गया था
में भी जमाष्ट्मी क़ी कुछ
खरीददारी हेतु
बाजार गया था

नहीं बेटा
यह बिजलीवाली रेलगाड़ी
बड़ी खतरनाक होती है
जरा सी चूक पर
जान खतरे में पड़ सकती है
तब पापा वो बैटरी वाली ही
दिला दो
बिरजू सामू और गुड्डू
सबके पास है वो
सब उसे चला कर इतराते है
दिखा दिखा कर
बहुर भाव खाते है
मेरे पास रेलगाड़ी न होने से
मेरा सब बहुत उपहास उड़ाते है

बेटा वो भी बेकार है
अभी देखे नहीं उस दिन टी वी में
दिखा रहा था
की बैटरी फटने से एक बालक
किस तरह मौत क़ी गोद में
समा गया था
अपने प्यारे सोनू को
कैसे जानबूझ कर
मौत में मुंह में धकेल सकता था
हाँ देखो प्लास्टिक की यह
रेलगाड़ी ले लो
प्लास्टिक से भी तो पापा
सब बताते है बहुत प्रदुषण फैलता है
नहीं पापा वह भी रहने दो

सोनू को एकाएक
घर से चलते समय
पापा की माँ से पैसे को लेकर
हो रही जिकजिक का
ध्यान आ गया था
पापा की विपन्न आर्थिक स्थिति ने
सोनू को अब और
मजबूत कर दिया था
पुनः स्थिति को सोनू ने ही सम्हाला
बाल सुलभ चंचलता से
रेलगाड़ी की बात को टाला
पापा छोडो व्यर्थ में पैसा
बर्बाद करने से क्या फायदा
तीन चार साल ही तो
और है बचपन के
कट जायेगा बाकायदा
सच पापा आप मुझे
कितना प्यार करते है
मेरी जान का आप
कितना ख्याल रखते है
औरो के पापा तो बस लगता है
प्यार का नाटक करते है

महेश इस अवांछित स्थिति से
कम्पित हो गया था
अपनी विपन्नता पर मन ही मन
स्वयं को कोस रहा था
उसे यह आभास हो चला था कि
सोनू भी उसकी माली हालत से
अब वाकिफ होकर
अपने अरमानो को तिलांजलि देकर
अपने बचपन को नकारते
उलट उसे ही सांत्वना दे रहा था

महेश अभी तक जहाँ
उसकी मांग को टालने में
आपने आप को सफल समझ रहा था
सोनू के विश्लेषण से
अब वह व्यथित हो रहा था
उसने विकल्प के रूप में
जितने भी प्रस्ताव
सोनू को सुझाया
सबका समुचित निकास
सोनू से पाया

मध्यवर्गीय परिवार का
मुखिया महेश
बच्चे कि इस अप्रत्याशित सोच पर
स्तब्ध हो गया था
जुलाई के महीने में वैसे ही
हाथ तंगी में हो रहा था
ऊपर से दिन पर दिन
बढ़ती मंहगाई ने
कमर तोड़ कर रख दिया था

नव धनाड्यों के बच्चों में
एक ओर जहाँ
मंहगे से मंहगे खिलौने के लिए
आपस में प्रतियोगिता चल रही थी
वही अपने बच्चे की एक
सामान्य सी मांग भी
पूरी न कर पाने की कसक
उसके सामने
अपराधबोध बन डटी थी

डा-रमेश कुमार निर्मेश Attachments may be unavailable. Learn more papa.jpg