आज का युधिष्ठर
घाट क़ी सीढियों पर
उदास बैठे राजू के सामने
सारा अतीत घूम रहा था
बापू क़ी मौत के बाद
या बापू के रहते हुए भी
मामा ने किस तरह
पूरे परिवार को संभाला था
उसके सभी बहनों का
विवाह करते करते
बापू तो चल बसे थे
राजू के लिए कुछ खास
नहीं छोड़ गए थे
दिन बीतते गए
राजू भी विवाह के योग्य हुआ
विवाह के पूर्व मामा ने
उसके टूटे फूटे घर को बनवाने का
फैसला लिया
सीमेंट लेन के लिए
हजार रूपये राजू को दिया
स्वयं ईट लेन के लिए
भत्ते का रुख किया
बीच में पुराने यारों ने हाथ पकड़
राजू को न चाहते हुए
फड पर बैठा लिया
महाभारत के युधिष्ठर के निति का
दुहाई दिया
उसकी लगभग छूट चुकी
जुए क़ी आदत ने भी जोर मारा
राजू फड पर बैठा
शीघ्र ही हार चुका था रुपया सारा
उसके पाव तले का जमीन खिसक गया था
जितने वाला रुपया लेकर
आगे चल दिया था
हताश राजू भी उसके
पीछे पीछे चल दिया था
बिना परिश्रम
अपने रुपये को बढ़ने के चाह ने
राजू को आज कितना
दीन और हीन बना दिया था
यहाँ तक क़ी उसे जुए क़ी फड तक
एक बार पुनः पंहुचा दिया था
कैसे करेगा वह देवता समान
अपने मामा का सामना
यह सोच वह एकदम से
घबरा गया था
मामा के विश्वास को
एक बार पुनः चोट पहुचाने का गम
उसे भीतर तक साल रहा था
सोच रहा था कि
किसी तरह यह पैसा इस बार
वापस आ गया कही
तो हे भगवन आपकी कसम
अब जुए कि ओर कभी
वह ताकेगा नहीं
चलते चलते आखिर मयखाने में
उससे मुलाकात हुई
राजी कि बाछें खिल गयी
राजू अपने पैसे कि वापसी कि उम्मेद्मे
उससे एक बार और खेलने कि
बार बार अपील कि
अबे खेल ले भैया खेल ले भैया
कि अनेक विनती कि
अंततः नशे में टुन्न होने पर
वह खेलने के लिए पुनः
तैयार हो गया था
शायद भाग्य को भी
राजू कि दशा पर तरस आ गया था
ईस बार
राजू के पत्ते पड़ने लगे थे
एक एक कर उसके रुपये
वापस आने लगे थे
पाँच सौ रूपये ऊपर से
और भी आ गे थे
धीरे धीरे लोग घर जाने लगे थे
उसमे से दो सौ राजू ने उसे और दिया
साथ ही वापस जाकर और
पीने का सलाह दिया
बाकी पैसे लेकर उसने स्वयं
बाजार का रुख किया
रास्ते में राजू
सोचता जा रहा था
कैसी मूर्खता और कैसी विडम्बना है कि
अपने पैसा जब अपने पास था
उसके वेलू और उसकी अस्मत का
उसे अहसास नहीं था
देखते ही देखते जब वह
दूसरे कि जेब में जाने लगा था
उसकी कीमत का
उसे भास हुआ था
जीता तो कई बार था वह
मगर इस जीत पर
आज का वह युधिष्ठर
बहुत ही इतरा रहा था
मूर्ख अपने ही पैसे क़ी वापसी पर
आज जश्न मना रहा था
सोच रहा था कि
कितनी मारकाट के बाद
महाभारत के युधिष्ठर का
सम्मान बचा रहा था
उसने तो अपने सम्मान को बस
चुटकियों में ही वापस
हासिल कर लिया था
तुलना करने पर वह अपने आप को
द्वापर के युधिष्ठर से श्रेष्ट पा रहा था
आज के बाद उसने फड पर
न बैठने कि कसम ली
हमेशा के लिए जुए को
जैरामजी की कही
घाट क़ी सीढियों पर
उदास बैठे राजू के सामने
सारा अतीत घूम रहा था
बापू क़ी मौत के बाद
या बापू के रहते हुए भी
मामा ने किस तरह
पूरे परिवार को संभाला था
उसके सभी बहनों का
विवाह करते करते
बापू तो चल बसे थे
राजू के लिए कुछ खास
नहीं छोड़ गए थे
दिन बीतते गए
राजू भी विवाह के योग्य हुआ
विवाह के पूर्व मामा ने
उसके टूटे फूटे घर को बनवाने का
फैसला लिया
सीमेंट लेन के लिए
हजार रूपये राजू को दिया
स्वयं ईट लेन के लिए
भत्ते का रुख किया
बीच में पुराने यारों ने हाथ पकड़
राजू को न चाहते हुए
फड पर बैठा लिया
महाभारत के युधिष्ठर के निति का
दुहाई दिया
उसकी लगभग छूट चुकी
जुए क़ी आदत ने भी जोर मारा
राजू फड पर बैठा
शीघ्र ही हार चुका था रुपया सारा
उसके पाव तले का जमीन खिसक गया था
जितने वाला रुपया लेकर
आगे चल दिया था
हताश राजू भी उसके
पीछे पीछे चल दिया था
बिना परिश्रम
अपने रुपये को बढ़ने के चाह ने
राजू को आज कितना
दीन और हीन बना दिया था
यहाँ तक क़ी उसे जुए क़ी फड तक
एक बार पुनः पंहुचा दिया था
कैसे करेगा वह देवता समान
अपने मामा का सामना
यह सोच वह एकदम से
घबरा गया था
मामा के विश्वास को
एक बार पुनः चोट पहुचाने का गम
उसे भीतर तक साल रहा था
सोच रहा था कि
किसी तरह यह पैसा इस बार
वापस आ गया कही
तो हे भगवन आपकी कसम
अब जुए कि ओर कभी
वह ताकेगा नहीं
चलते चलते आखिर मयखाने में
उससे मुलाकात हुई
राजी कि बाछें खिल गयी
राजू अपने पैसे कि वापसी कि उम्मेद्मे
उससे एक बार और खेलने कि
बार बार अपील कि
अबे खेल ले भैया खेल ले भैया
कि अनेक विनती कि
अंततः नशे में टुन्न होने पर
वह खेलने के लिए पुनः
तैयार हो गया था
शायद भाग्य को भी
राजू कि दशा पर तरस आ गया था
ईस बार
राजू के पत्ते पड़ने लगे थे
एक एक कर उसके रुपये
वापस आने लगे थे
पाँच सौ रूपये ऊपर से
और भी आ गे थे
धीरे धीरे लोग घर जाने लगे थे
उसमे से दो सौ राजू ने उसे और दिया
साथ ही वापस जाकर और
पीने का सलाह दिया
बाकी पैसे लेकर उसने स्वयं
बाजार का रुख किया
रास्ते में राजू
सोचता जा रहा था
कैसी मूर्खता और कैसी विडम्बना है कि
अपने पैसा जब अपने पास था
उसके वेलू और उसकी अस्मत का
उसे अहसास नहीं था
देखते ही देखते जब वह
दूसरे कि जेब में जाने लगा था
उसकी कीमत का
उसे भास हुआ था
जीता तो कई बार था वह
मगर इस जीत पर
आज का वह युधिष्ठर
बहुत ही इतरा रहा था
मूर्ख अपने ही पैसे क़ी वापसी पर
आज जश्न मना रहा था
सोच रहा था कि
कितनी मारकाट के बाद
महाभारत के युधिष्ठर का
सम्मान बचा रहा था
उसने तो अपने सम्मान को बस
चुटकियों में ही वापस
हासिल कर लिया था
तुलना करने पर वह अपने आप को
द्वापर के युधिष्ठर से श्रेष्ट पा रहा था
आज के बाद उसने फड पर
न बैठने कि कसम ली
हमेशा के लिए जुए को
जैरामजी की कही
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें