बुधवार, 29 सितंबर 2010


विचलित है मन
कृष्ण कराओ
पुनःअपने विराट स्वरुप का
दर्शनविचलित है
मनआसन्न एक
परिवर्तनगीता का
भाष्यपठनीय
पाठ्यपूरित
दर्शनीय एक और
अग्निपथपिटती परंपराओं की लकीरें
क्या खोल पायेगी
उन शहीदों की तकदीरें
जिन्होंने सहर्षकिया था
जीवन अर्पण
उनकी विधवाएं मांजती आज
इन नेताओं के घर बर्तन
बच्चे जिनके चाटते
इनके आज जूठन
सरकारी अनुदानों हेतु
लगाते चक्कर
खाते टक्कर पे टक्कर
भूखे भेड़ियों का बन गयी शिकार
अस्मत हो गई तार - तार
बिक गए जिनके घर- dwar
aj भी जोहती
निराला की वह तोड़ती pathhar
apnaपालनहार !!

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