रेलवे स्टेशन पर
टिकट के लिए
लाइन में खड़ा था
संभवतः सर्वर ख़राब था
इसलिए टिकट वितरण कुछ देर
के लिए बाधित हो गया था
निकट पास में एक
दस वर्षीय बालक एक फटा
बैग लिए निरीह नजरों से
मुझे देख रहा था
लगा शायद भीख मांगने
के लिए खड़ा था
मैंने जेब से कुछ सिक्के
निकाल कर उसे देना चाहा
उसने तत्काल लेने से
इंकार कर दिया
मुझे झुझुलावा दिया
बोला बाबू आपके जूते
गंदे हो गए है
इसे पालिश करवा लीजिये
बदले में मेरी मजदूरी के
दो रुपये ही मुझको दे दीजिये
तभी सर्वर ठीक
होने का सिग्नल आया
टिकट बाबू ने आवाज लगाया
मैंने टिकट लेते हुए
उस बच्चे से कहा बेटा
यह दो रुपये रख लो
मेरी ट्रेन आ चुकी है
जूते को बिना पालिश के
ही रहने दो
वरना ट्रेन छूट जाएगी
तुम्हारी तुम्हारी खुद्दारी हमें
बहुत महँगी पड़ जायेगी
वह मुझे छोड़ लाइन में
पीछे किसी दूसरे के पास चला गया
मै झुन्झुलाहट और आश्चर्य से
उसे देखता रहा
किसी तरह ट्रेन पर चढ़
अपने गंतव्य को चल दिया
सोचता रहा उसके बारे में
कहाँ तो एक से एक
चोर उचक्के जैसे लडको से
सदा यहाँ पाले पड़ते रहते है
जो खड़े ही खड़े हमें और आपको
बेच देने का माद्दा रखते है
ऐसे में यह लड़का कैसे
अपने स्तित्व को बचाये पड़ा है
लगा कही गलती से तो
इस सदी में नहीं जी रहा है
निकट अतीत तक मन
जहाँ अपनी संस्कृति में तेजी से
हो रहे क्षरण और संक्रमण
से व्यथित था
वही अब उसके संरक्षण कि दिशा में
इस छोटे से ही प्रयास को देख
मन एक सुखद अहसास से
गदगद हो रहा था
वस्तुतः सच है कि
ऐसे प्रयास इस दिशा में
पर्याप्त नहीं है
लेकिन यह भी सच है कि
ऐसी सोच आज भी जिन्दा है
यही कम नहीं है
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
गुरुवार, 21 अप्रैल 2011
रिश्तों की नीव
आधुनिक
भारतीय समाज में सुदूर
विदेशों कि तमाम सोसल नेट्वोर्किंग
सैएटों को बड़े ही जोशो खारोशों से
अपनाने का उपक्रम
बड़े ही तेजी से चल रहा है
पर अपने ही नीचे की
जमीन खिसक रही है
इसका पता हमें क्या लग रहा है
विर्चुवल वर्ल्ड के स्वागत को
तत्पर दिखते है
रियल वर्ल्ड से कोसों दूर हो रहे है
अपनो की ही नेट्वोर्किंग से
अंजान और क्रमशः दूर हो गए है
एकाकी जीवन में इस कदर खो गए है
टूटते घर और छीजते परिवार
इस व्यथा को चीख कर कह रहे है
फेसबुक पर तो सिस्टर वीक को
उद्यमता से सेलेब्रेट कर रहे है
पर अपनी सगी बहनों की
खबर से अंजान हो रहे है
अपने जीवन के न जाने
कितने मूल्यवान बसंत को जिसने
अजीज भाई के लिए बड़े ही
तत्परता से बलिदान कर डाला
भाई को युवा करने के लिए
अपने यौवन का गला घोट डाला
उस भाई ने इस मर्यादा को ही
बड़े ही सिद्दत से धो डाला
रहे होंगे उन बहनों के
भी कितने अरमान
कभी कम नहीं थे सोसाइटी में
उनके भी मान सम्मान
जब एक अज्ञात अनिष्ट कि
आशंका ने उन्हें स्वयं घर में
कैद के लिए विवश कर दिया था
क्या उस दशा में उस भाई का
कोई फर्ज नहीं था
उस भाई ने अपने को
अपने सपनों कि दुनिया में ही सिमटा लिया
जिनकी बिना पर वह सपने देख रहा था
उन्ही को ठुकरा दिया
न जाने कितनी फ़िल्मी और
गैरफिल्मी गीत भाई बहन के
रिश्ते पर लिखी गयी होगी
जिन्हें पढ़ लिख कर कितनी बार
हमारी आंखे नम हो गयी होगी
पर नम क्यों नहीं होती इन
रियल भाइयों कि आंखे
क्या रह जाएँगी ये सिर्फ
किताब कि बातें
जिन्हें जब चाह पढ़ा और
आंसूं गिरा आँखों को धो लिया
दिल के बोझ को इक्छानुसार
जब चाह कम कर लिया
फिर उन भावनाओं को
पन्नो में दफ़न कर दिया
दूर करना होगा हमें
इन विसंगतियों को
गहराई से समझना होगा
इन रक्त के रिश्तो को
जीवन में एक दिन ऐसा
हर किसी के जीवन में आता है
जीवन के सबसे करीबी और कीमती
रिश्तों के रूप में
माँ बापू का साया
सर से उठ जाता है
ऐसे में मात्र एक बहन ही
रक्त के रिश्ते के रूप में शेष रहती है
बाकी रिश्ते तो बस
रिश्तों के अवशेष सी दिखती है
बहन अगर बड़ी है तो
माँ का प्यार देती है
छोटी बहन का क्या कहना
वह तो बेटियों सी होती है
आंगन का सृंगार होती है
जो कितनी भी आपदा से घिरी हो
पर पापा पर अपने जान को
बेहिचक न्योछावर करती है
आइये सुदृढ़ करे इन
रिश्तों के जीव को
सजीव करे पुनः निर्जीव हो चुके
रिश्तों की नीव को
भारतीय समाज में सुदूर
विदेशों कि तमाम सोसल नेट्वोर्किंग
सैएटों को बड़े ही जोशो खारोशों से
अपनाने का उपक्रम
बड़े ही तेजी से चल रहा है
पर अपने ही नीचे की
जमीन खिसक रही है
इसका पता हमें क्या लग रहा है
विर्चुवल वर्ल्ड के स्वागत को
तत्पर दिखते है
रियल वर्ल्ड से कोसों दूर हो रहे है
अपनो की ही नेट्वोर्किंग से
अंजान और क्रमशः दूर हो गए है
एकाकी जीवन में इस कदर खो गए है
टूटते घर और छीजते परिवार
इस व्यथा को चीख कर कह रहे है
फेसबुक पर तो सिस्टर वीक को
उद्यमता से सेलेब्रेट कर रहे है
पर अपनी सगी बहनों की
खबर से अंजान हो रहे है
अपने जीवन के न जाने
कितने मूल्यवान बसंत को जिसने
अजीज भाई के लिए बड़े ही
तत्परता से बलिदान कर डाला
भाई को युवा करने के लिए
अपने यौवन का गला घोट डाला
उस भाई ने इस मर्यादा को ही
बड़े ही सिद्दत से धो डाला
रहे होंगे उन बहनों के
भी कितने अरमान
कभी कम नहीं थे सोसाइटी में
उनके भी मान सम्मान
जब एक अज्ञात अनिष्ट कि
आशंका ने उन्हें स्वयं घर में
कैद के लिए विवश कर दिया था
क्या उस दशा में उस भाई का
कोई फर्ज नहीं था
उस भाई ने अपने को
अपने सपनों कि दुनिया में ही सिमटा लिया
जिनकी बिना पर वह सपने देख रहा था
उन्ही को ठुकरा दिया
न जाने कितनी फ़िल्मी और
गैरफिल्मी गीत भाई बहन के
रिश्ते पर लिखी गयी होगी
जिन्हें पढ़ लिख कर कितनी बार
हमारी आंखे नम हो गयी होगी
पर नम क्यों नहीं होती इन
रियल भाइयों कि आंखे
क्या रह जाएँगी ये सिर्फ
किताब कि बातें
जिन्हें जब चाह पढ़ा और
आंसूं गिरा आँखों को धो लिया
दिल के बोझ को इक्छानुसार
जब चाह कम कर लिया
फिर उन भावनाओं को
पन्नो में दफ़न कर दिया
दूर करना होगा हमें
इन विसंगतियों को
गहराई से समझना होगा
इन रक्त के रिश्तो को
जीवन में एक दिन ऐसा
हर किसी के जीवन में आता है
जीवन के सबसे करीबी और कीमती
रिश्तों के रूप में
माँ बापू का साया
सर से उठ जाता है
ऐसे में मात्र एक बहन ही
रक्त के रिश्ते के रूप में शेष रहती है
बाकी रिश्ते तो बस
रिश्तों के अवशेष सी दिखती है
बहन अगर बड़ी है तो
माँ का प्यार देती है
छोटी बहन का क्या कहना
वह तो बेटियों सी होती है
आंगन का सृंगार होती है
जो कितनी भी आपदा से घिरी हो
पर पापा पर अपने जान को
बेहिचक न्योछावर करती है
आइये सुदृढ़ करे इन
रिश्तों के जीव को
सजीव करे पुनः निर्जीव हो चुके
रिश्तों की नीव को
बुधवार, 13 अप्रैल 2011
अन्ना से मिली उर्जा को हमें सुरक्षित रखना होगा
एक बार पुनः
अतीत ने अपनी श्रेष्ठता
वर्तमान पर सिद्ध की
हम काफी दिनों से बात
कर रहे थे भ्रष्टाचार पर प्रहार की
एक दूसरे का मुंह देख रहे थे
कौन करे प्रारंभ बस यही सोच रहे थे
इसी बीच उम्र को चुनौती देते हुए
एक सत्तर साल के युवा ने
हमारे बेचैनी को देखा
एक बार पुनः अतीत की अगुआई
करते हुए वर्तमान को सीख
देने की मुद्रा में मोर्चा खोला
न केवल विजयश्री का
किया वरण
वरन भ्रष्टाचार भी मांगता
दिखा शरण
हाँ इस मुद्दे पर देशव्यापी
समर्थन युवाओं ने भरपूर दिया
ऊब चुके है इस व्यवस्था से
अपनी पुरजोर उपस्थिति से
यह सिद्ध किया
काश इसका आगाज
और पहले हो गया होता
तो देश इक्कीसवी सदी में
नए जोश और जज्बातों के साथ
कब का पहुँच गया होता
निसंदेह आज की तमाम
समस्याओं की जननी है
भ्रष्टाचार की यह विषबेल
निश्चित रूप से अब
समाप्त हो जानी चाहिए
यह नूरा कुश्तियों का खेल
पर सनद रहे
अन्ना हजारे से मिली उर्जा को
हमें संजो कर रखना होगा
इस लगी हुई आग को किसी
कीमत पर बुझने देना नहीं होगा
अन्ना के त्याग ने रखी है
जिस सत्य अहिंसा पर आधारित
लड़ाई की पुनः नीव
लगभग वर्तमान परिवेश में
विलुप्त हो चुके गाँधी की
प्रासंगिकता को किया है पुनः सजीव
तभी इस आन्दोलन की
सार्थकता फलित होगी
वर्ना इन भ्रष्टाचारियों की एक
नयी व्यवस्था के साथ
पुनः विषबेल बढेगी
कर ले हम चाहे
कितनी ही ऊँची बाते
करले कितने ही दौर की मुलाकाते
पर सच्चाई यही है कि
अतीत को बिसरा कर
बनती नहीं बातें
निकट अतीत कि घटना ने
इस बात के इतिहास को
पुनः दोहराया
कि सत्य परेशान भले ही हो
पर पराजित कभी हो नहीं पाया
बेशक यह कुछ लोगो के लिए
वही होता रहा है जो
उनको है नहीं भाया
पर देर से ही सही अन्ना ने
उनको भी जमीन पर लाया
संभव है आगे भविष्य में
ऐसे और मोर्चे अवश्य ही खोलने होगे
बेशक अन्ना हमारे साथ नहीं होगे
अतः हमें तैयार और जागरूक
इस निमित्त रहना होगा
एक नूतन शंखनाद के लिए
अन्ना से मिली उर्जा को
हमें सुरक्षित रखना होगा
अतीत ने अपनी श्रेष्ठता
वर्तमान पर सिद्ध की
हम काफी दिनों से बात
कर रहे थे भ्रष्टाचार पर प्रहार की
एक दूसरे का मुंह देख रहे थे
कौन करे प्रारंभ बस यही सोच रहे थे
इसी बीच उम्र को चुनौती देते हुए
एक सत्तर साल के युवा ने
हमारे बेचैनी को देखा
एक बार पुनः अतीत की अगुआई
करते हुए वर्तमान को सीख
देने की मुद्रा में मोर्चा खोला
न केवल विजयश्री का
किया वरण
वरन भ्रष्टाचार भी मांगता
दिखा शरण
हाँ इस मुद्दे पर देशव्यापी
समर्थन युवाओं ने भरपूर दिया
ऊब चुके है इस व्यवस्था से
अपनी पुरजोर उपस्थिति से
यह सिद्ध किया
काश इसका आगाज
और पहले हो गया होता
तो देश इक्कीसवी सदी में
नए जोश और जज्बातों के साथ
कब का पहुँच गया होता
निसंदेह आज की तमाम
समस्याओं की जननी है
भ्रष्टाचार की यह विषबेल
निश्चित रूप से अब
समाप्त हो जानी चाहिए
यह नूरा कुश्तियों का खेल
पर सनद रहे
अन्ना हजारे से मिली उर्जा को
हमें संजो कर रखना होगा
इस लगी हुई आग को किसी
कीमत पर बुझने देना नहीं होगा
अन्ना के त्याग ने रखी है
जिस सत्य अहिंसा पर आधारित
लड़ाई की पुनः नीव
लगभग वर्तमान परिवेश में
विलुप्त हो चुके गाँधी की
प्रासंगिकता को किया है पुनः सजीव
तभी इस आन्दोलन की
सार्थकता फलित होगी
वर्ना इन भ्रष्टाचारियों की एक
नयी व्यवस्था के साथ
पुनः विषबेल बढेगी
कर ले हम चाहे
कितनी ही ऊँची बाते
करले कितने ही दौर की मुलाकाते
पर सच्चाई यही है कि
अतीत को बिसरा कर
बनती नहीं बातें
निकट अतीत कि घटना ने
इस बात के इतिहास को
पुनः दोहराया
कि सत्य परेशान भले ही हो
पर पराजित कभी हो नहीं पाया
बेशक यह कुछ लोगो के लिए
वही होता रहा है जो
उनको है नहीं भाया
पर देर से ही सही अन्ना ने
उनको भी जमीन पर लाया
संभव है आगे भविष्य में
ऐसे और मोर्चे अवश्य ही खोलने होगे
बेशक अन्ना हमारे साथ नहीं होगे
अतः हमें तैयार और जागरूक
इस निमित्त रहना होगा
एक नूतन शंखनाद के लिए
अन्ना से मिली उर्जा को
हमें सुरक्षित रखना होगा
गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
छात्रावास की यादें
विश्वविद्यालय के पूर्व
छात्रो के समागम का पाकर निमंत्रण
बिह्वल हो गया आह्लादित मन
मन में अपार अकथ अव्यक्त विचार
और उदगार की संभावनाएं
लहरों की तरह उठ और गिर रही थी
किस किस से होगी मुलाकात
सोच तन मन सिहरित हो रही थी
कौन अब क्या कर रहा होगा
कौन अब कैसा दीख रहा होगा
कितनो के बाल सर पर होगे
कितनो के सर ख़ाली हो गए होगे
सभी अपने बच्चो को साथ लाये होगे
मिल कर सब मौज और मस्ती करेगे
अतीत की प्यारी बातें करेंगे
मन के किसी कोने में थी यह आस
करेंगे पुरानी यादें
जाकर अपने छात्रावास
निर्धारित तिथि पर मैं
सम्मेलन के लिए चल पड़ा
देखकर शानदार आयोजन
में हतप्रभ था खड़ा
परिसर के एक एक कोने से थी यादें जुडी
पर थी यहाँ किसको किसकी पड़ी
मित्रों से होती रही बस
औपचारिक मुलाकातें
होती रही बस कैरियर
और भविष्य की बातें
किसी को अतीत पर चिंता नहीं चर्चा की
देख सबका प्रोफेसनल व्यवहार
मैंने भी कोई परिचर्चा की नहीं
सब दावतें उड़ाने में व्यस्त
सूरज होने को था अस्त
मैं अकेले ही चल पड़ा
अपने छात्रावास की ओर
वहां भी दीख रहा था काफी शोर
थोड़ी ही देर में था मैं
अपने कमरे के पास
वह कमरा मेरे लिए था खास
बाहर पड़ रहा था पाला
कमरे पर लटक रहा था ताला
बरामदे में खड़ा मैं उसमे
रहने वाले छात्र की राह देख रहा था
खड़ा खड़ा मैं अतीत में खो गया था
इतने अन्तराल के उपरांत भी
छात्रावास परिसर को कुछ परिवर्तन के बाद
भी तक़रीबन जस का तस पा रहा था
कोने वह बरगद का पेड़ आज भी
अविचल खड़ा लहरा रहा था
उस पर आज भी पंछियों का बसेरा
स्पष्ट दिख रहा था
जब भी कभी हम उदास होते
सुकून के लिए उसकी छावं में होते
गाँव से जब माँ बापू की आती
प्यार और सीख भरी पाती
उसी के नीचे बैठ उसे पदते
साथ में भेजे गए मेवे और
आचार का वही बैठ स्वाद चखते
माँ की बार बार की सीख और प्यार देख
जब कभी उसकी याद में आंसू चलते
उसकी छाव को हम माँ का आंचल समझ
उसकी गोद गोद में लेटे होते
माँ से दूर होते हुए भी माँ के करीब होते
यहाँ आकर माँ की याद पुनः ताजी हो गयी थी
जो की अब इस दुनिया में नहीं थी
न चाहते हुए भी आँखों के कोरो से
आंसुओं की बगावत चल रही थी
स्वयं को पुनः संभाल कर देखा
दूसरी और सेमर का विशाल वृक्ष
आज भी झूम रहा था
उससे गिरते हुए नाव प्रतीको को
छात्रावास के फुहारे में चलाना याद आ रहा था
सामने पंछियाना पेडो के समूह
जिसके नीचे कभी हम खेलते थे हु तू तू
उनके लाल लाल फूलो से पूरा
परिसर भरा हुआ था
मानो मेरे स्वागत को मेरा
इंतजार कर रहा था
सामने की क्यारियों में आज भी
गेंदा और गुलाब था खिला हुआ
उसकी खुशबू से सारा
परिसर था गमका हुआ
लान में आज भी मोरो के समूह
निर्भय विचरण कर रहे थे
भौरों के झुण्ड इस समय तक भी
फूलो पर मंडरा रहे थे
पंछियों के झुण्ड भी पेडो पर
स्थित अपने बसेरे पर जा रहे थे
खेल के मैदान से पसीना पोछते हुए छात्र
अपने छात्रावासों को जा रहे थे
दूर सड़क उस पर भगवान भाष्कर भी
क्रमशः अस्त हो रहे थे
सारा दृश्य ही मुझे परिचित लग रहा था
मानो सब मुझे पहचान मेरे
स्वागत को इच्छुक हो रहे थे
लान में पड़े बेंच पर बैठकर
मै आह्लादित था पूरा परिसर देखकर
पर साथ ही सोच रहा था कि
आज के मानव का हो गया है
कितना व्यावसायिक और मशीनीकरण
इमोशन और भावनाओ का हो गया है क्षरण
वह भूल गया है अतीत की समृद्ध
आधारशिला पर खड़ा करना
अपने भविष्य का महल
येन केन करना चाहता है बस
अपनी महत्वाकांछाओं का वरण
भूल चूका है समृद्ध यादों और
छोटी छोटी बातो में करना
खुशियों की तलाश
ढूढता रहता है पागलों की तरह
तीव्र ग्रीष्म में पलाश
झरोखों से आती प्यारी शीतल
पवन को छोड़ कर
समुद्री तुफानो में उड़ना पसंद करता है
लगातार और ऊँचा उड़ने की ख्वाइश में
असमय अपनी मृत्यु को आमंत्रण देता है
इन चलते फिरते बुद्धिजीवी लोगो से
बेहतर इन मूक प्राकृत उपादानो के
स्वागत से मै निरुत्तर और
निर्जीव सा हो गया था
खोकर अतीत की यादों में
इतने सजीवो के बीच में
अपने आप के निर्जीव होने पर
भी इतरा रहा था
छात्रो के समागम का पाकर निमंत्रण
बिह्वल हो गया आह्लादित मन
मन में अपार अकथ अव्यक्त विचार
और उदगार की संभावनाएं
लहरों की तरह उठ और गिर रही थी
किस किस से होगी मुलाकात
सोच तन मन सिहरित हो रही थी
कौन अब क्या कर रहा होगा
कौन अब कैसा दीख रहा होगा
कितनो के बाल सर पर होगे
कितनो के सर ख़ाली हो गए होगे
सभी अपने बच्चो को साथ लाये होगे
मिल कर सब मौज और मस्ती करेगे
अतीत की प्यारी बातें करेंगे
मन के किसी कोने में थी यह आस
करेंगे पुरानी यादें
जाकर अपने छात्रावास
निर्धारित तिथि पर मैं
सम्मेलन के लिए चल पड़ा
देखकर शानदार आयोजन
में हतप्रभ था खड़ा
परिसर के एक एक कोने से थी यादें जुडी
पर थी यहाँ किसको किसकी पड़ी
मित्रों से होती रही बस
औपचारिक मुलाकातें
होती रही बस कैरियर
और भविष्य की बातें
किसी को अतीत पर चिंता नहीं चर्चा की
देख सबका प्रोफेसनल व्यवहार
मैंने भी कोई परिचर्चा की नहीं
सब दावतें उड़ाने में व्यस्त
सूरज होने को था अस्त
मैं अकेले ही चल पड़ा
अपने छात्रावास की ओर
वहां भी दीख रहा था काफी शोर
थोड़ी ही देर में था मैं
अपने कमरे के पास
वह कमरा मेरे लिए था खास
बाहर पड़ रहा था पाला
कमरे पर लटक रहा था ताला
बरामदे में खड़ा मैं उसमे
रहने वाले छात्र की राह देख रहा था
खड़ा खड़ा मैं अतीत में खो गया था
इतने अन्तराल के उपरांत भी
छात्रावास परिसर को कुछ परिवर्तन के बाद
भी तक़रीबन जस का तस पा रहा था
कोने वह बरगद का पेड़ आज भी
अविचल खड़ा लहरा रहा था
उस पर आज भी पंछियों का बसेरा
स्पष्ट दिख रहा था
जब भी कभी हम उदास होते
सुकून के लिए उसकी छावं में होते
गाँव से जब माँ बापू की आती
प्यार और सीख भरी पाती
उसी के नीचे बैठ उसे पदते
साथ में भेजे गए मेवे और
आचार का वही बैठ स्वाद चखते
माँ की बार बार की सीख और प्यार देख
जब कभी उसकी याद में आंसू चलते
उसकी छाव को हम माँ का आंचल समझ
उसकी गोद गोद में लेटे होते
माँ से दूर होते हुए भी माँ के करीब होते
यहाँ आकर माँ की याद पुनः ताजी हो गयी थी
जो की अब इस दुनिया में नहीं थी
न चाहते हुए भी आँखों के कोरो से
आंसुओं की बगावत चल रही थी
स्वयं को पुनः संभाल कर देखा
दूसरी और सेमर का विशाल वृक्ष
आज भी झूम रहा था
उससे गिरते हुए नाव प्रतीको को
छात्रावास के फुहारे में चलाना याद आ रहा था
सामने पंछियाना पेडो के समूह
जिसके नीचे कभी हम खेलते थे हु तू तू
उनके लाल लाल फूलो से पूरा
परिसर भरा हुआ था
मानो मेरे स्वागत को मेरा
इंतजार कर रहा था
सामने की क्यारियों में आज भी
गेंदा और गुलाब था खिला हुआ
उसकी खुशबू से सारा
परिसर था गमका हुआ
लान में आज भी मोरो के समूह
निर्भय विचरण कर रहे थे
भौरों के झुण्ड इस समय तक भी
फूलो पर मंडरा रहे थे
पंछियों के झुण्ड भी पेडो पर
स्थित अपने बसेरे पर जा रहे थे
खेल के मैदान से पसीना पोछते हुए छात्र
अपने छात्रावासों को जा रहे थे
दूर सड़क उस पर भगवान भाष्कर भी
क्रमशः अस्त हो रहे थे
सारा दृश्य ही मुझे परिचित लग रहा था
मानो सब मुझे पहचान मेरे
स्वागत को इच्छुक हो रहे थे
लान में पड़े बेंच पर बैठकर
मै आह्लादित था पूरा परिसर देखकर
पर साथ ही सोच रहा था कि
आज के मानव का हो गया है
कितना व्यावसायिक और मशीनीकरण
इमोशन और भावनाओ का हो गया है क्षरण
वह भूल गया है अतीत की समृद्ध
आधारशिला पर खड़ा करना
अपने भविष्य का महल
येन केन करना चाहता है बस
अपनी महत्वाकांछाओं का वरण
भूल चूका है समृद्ध यादों और
छोटी छोटी बातो में करना
खुशियों की तलाश
ढूढता रहता है पागलों की तरह
तीव्र ग्रीष्म में पलाश
झरोखों से आती प्यारी शीतल
पवन को छोड़ कर
समुद्री तुफानो में उड़ना पसंद करता है
लगातार और ऊँचा उड़ने की ख्वाइश में
असमय अपनी मृत्यु को आमंत्रण देता है
इन चलते फिरते बुद्धिजीवी लोगो से
बेहतर इन मूक प्राकृत उपादानो के
स्वागत से मै निरुत्तर और
निर्जीव सा हो गया था
खोकर अतीत की यादों में
इतने सजीवो के बीच में
अपने आप के निर्जीव होने पर
भी इतरा रहा था
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