आज प्रातः भोर से ही
प्रकृति के तीव्र वर्षणका प्रकोप
अनवरत जारी था
बारिस की तीव्रता का
यह आलम था कि
नीचे बगीचे में आम पर
नीम के पेड़ों का
घर्षण भारी था
अभी तक युवा आम जो
कल शाम तक अपनी
तरुणाई पर इठला रहा था
पुरवैये के मस्त झोकों में
मस्ती से झूम रहा था
किसी अन्य को कुछ नहीं
समझ रहा था
आज मौन नतमस्तक होकर
मानो वयस्क नीम से
पनाह मांग रहा था
नीम के तीव्र घर्षण से जब
एक ओर वह ज्यादा ही
झुक जाता था
लगता कि अब गिरा तब गिरा
तभी नीम की दूसरी डालों का
पाकर सहारा वह
किसी तरह संभल जाता था
जैसे एक पिता अपने
रो रहे बच्चे को दुलारने का
प्रयास करता
हवा में उछल कर खुशी
जाहिर करता
उसे गिरने से पहले ही गोद में
ले बलैया खूब लेता
इसी बीच बच्चा कभी हँसता
कभी रोता
पर अंत में निश्चिन्त हो
पिता के कंधे से लग
आराम से सो जाता
कुछ ऐसा ही इन सजीवों
मगर बेजुबानों का खेल चल रहा था
छत पर बाने किचेन गार्डेन में
में पौधों के बीच विचारमग्न बैठा था
प्रकृति के इस अनुपम नैसर्गिक
खेल का आनंद ले रहा था
साथ ही प्रकृति अपने इन
उपादानों के माध्यम से
जो हमें सन्देश दे रही थी
उस पर मेरे अंतर्मन में
बहस चल रही थी
उड़ ले पंख लगा कर चाहे
कितनी भी आज की युवा पीढ़ी
अनुभव रत अतित से
खेल ले चाहे कितना भी
प्रकृति के तीव्र वर्षणका प्रकोप
अनवरत जारी था
बारिस की तीव्रता का
यह आलम था कि
नीचे बगीचे में आम पर
नीम के पेड़ों का
घर्षण भारी था
अभी तक युवा आम जो
कल शाम तक अपनी
तरुणाई पर इठला रहा था
पुरवैये के मस्त झोकों में
मस्ती से झूम रहा था
किसी अन्य को कुछ नहीं
समझ रहा था
आज मौन नतमस्तक होकर
मानो वयस्क नीम से
पनाह मांग रहा था
नीम के तीव्र घर्षण से जब
एक ओर वह ज्यादा ही
झुक जाता था
लगता कि अब गिरा तब गिरा
तभी नीम की दूसरी डालों का
पाकर सहारा वह
किसी तरह संभल जाता था
जैसे एक पिता अपने
रो रहे बच्चे को दुलारने का
प्रयास करता
हवा में उछल कर खुशी
जाहिर करता
उसे गिरने से पहले ही गोद में
ले बलैया खूब लेता
इसी बीच बच्चा कभी हँसता
कभी रोता
पर अंत में निश्चिन्त हो
पिता के कंधे से लग
आराम से सो जाता
कुछ ऐसा ही इन सजीवों
मगर बेजुबानों का खेल चल रहा था
छत पर बाने किचेन गार्डेन में
में पौधों के बीच विचारमग्न बैठा था
प्रकृति के इस अनुपम नैसर्गिक
खेल का आनंद ले रहा था
साथ ही प्रकृति अपने इन
उपादानों के माध्यम से
जो हमें सन्देश दे रही थी
उस पर मेरे अंतर्मन में
बहस चल रही थी
उड़ ले पंख लगा कर चाहे
कितनी भी आज की युवा पीढ़ी
अनुभव रत अतित से
खेल ले चाहे कितना भी
खेल साप सीढ़ी
पर आज भी उसके पास
जवाब नहीं है
अतीत की सम्पन्नता का
साधनों के अभाव में भी
कालजयी ऐतिहासिक इमारतों के
निर्माण की गाथा का
कैसे अतीत के लोगो ने
विशाल पहाड़ों पर किले बनवाने हेतु
विशाल शिलाखंडो को
शीर्ष तक पहुचाया होगा
आज तक अभेद बने है वे
आखिर कौन सा जोड़
लगाया होगा
किन क्रेनो से उन्हें ऊपर
पहुचाया होगा
दक्षिण के मंदिरों में विशालतम
प्रस्तर प्रखंडो का उपयोग
जिसके परिवहन पर ही आज
पूरी तन्मयता से शोध जारी है
है नहीं केवल एक संयोग
आदि ऐसे कितने नमूने
अतीत कि वरीयता वर्तमान पर
सिद्ध करते है
फिर भी हम अज्ञात और
अज्ञान बने फिरते है
हर दृष्टिकोण से अपने
समृद्ध और संपन्न अतीत पर
गर्व करने के बजाय
हम उस पर भरोसा
नहीं करते है