ड्धर कई दिनों से
भयंकर पूस की ठण्ड में
दिनेश माँ को मंदिर
सत्संग जाने में हो रहे
कष्टों को देख रहा था
मगर लाचार
अपनी सीमित आय के कारण
कुछ सकारात्मक पहल
कर नहीं प् रहा था
बापू की मौत के बाद
अब यही सब माँ के
समय काटने का सहारा था
वरना बहू को भी बड़ी उमंग से
माँ ने ब्याह कर लाया था
पर जैसा की होता आया था
बहू से उसने कुछ खास
सुख नहीं पाया था
दिनेश दोनों के बीच
किसी तरह सेतु और संतुलन
बनाने का प्रयास कर
अपनी गाड़ी चलाता रहा
हर बार माँ को ही पीछे हट
अपने अरमानो का
गला घोटते पाया था
फैक्ट्री से निकलते हुए
दिनेश अपनी तनख्वाह के
रुपये गिन रहा था
माँ को हो रहे कष्ट के बारे में
सोचते हुए माँ से आज एक
बढ़िया गरम दुशाला लेकर
आने का सुबह ही
वादा कर आया था
तभी रास्ते में मोबाइल घनघनाया
उधर से फोन पर
पत्नी को पाया
मेरी माँ आज शाम को
आपकी माँ को देखने आ रही है
कुछ पोते पोतियों को भी
अपने साथ ला रही है
नाश्ते में चुरा मटर और गाजर के
हलवे का पत्नी से फरमान पाया
ऊसका मन झुझलाया
मरता क्या न करता
सभी समानो के साथ फिर भी
अपनी माँ के लिए
भविष्य के वित्तीय संकतो से अंजान
एक बढ़िया गरम दुशाला
आखिर खरीद ही लिया
और देखते ही देखते
घर आ गया
पत्नी ने शीघ्रता से आगे बढ़
उसके हाथ के बोझ को हल्का किया
महंगा बढ़िया दुशाला देख
उसका दिल बाग बाग हो गया
तुरन्त उसे अपनी माँ को
ओढ़ते हुए बोली
देखो मम्मी आपके दामाद
मेरे दिल की बात
कितनी जल्दी जान जाते है
सच ये आपको कितने मानते है
आपके लिए कुछ न कुछ
करते ही रहते है
इसीलिये तो सभी रिश्तेदार
हमसे इतना जलते है
सामने दिनेश के माँ
खामोश खड़ी पूरे घटनाक्रम का
मूर्तिवत अध्ययन कर रही थी
अपने बच्चे के अरमानो की होली
जलते हुए बेबस देख रही थी
साथ ही दिनेश की आँखों में
अपने लिये एक विशेष
तड़प भी पा रही थी
उसे अपराधबोध से
बचाने के लिए
उसे आँखों ही आँखों में
दिलासा दे रही थी
साथ ही बहू के माँ के सामने
बहू के तरोफो के पुल भी
धाराप्रवाह बाधे चली
जा रही थी
निर्मेश
भयंकर पूस की ठण्ड में
दिनेश माँ को मंदिर
सत्संग जाने में हो रहे
कष्टों को देख रहा था
मगर लाचार
अपनी सीमित आय के कारण
कुछ सकारात्मक पहल
कर नहीं प् रहा था
बापू की मौत के बाद
अब यही सब माँ के
समय काटने का सहारा था
वरना बहू को भी बड़ी उमंग से
माँ ने ब्याह कर लाया था
पर जैसा की होता आया था
बहू से उसने कुछ खास
सुख नहीं पाया था
दिनेश दोनों के बीच
किसी तरह सेतु और संतुलन
बनाने का प्रयास कर
अपनी गाड़ी चलाता रहा
हर बार माँ को ही पीछे हट
अपने अरमानो का
गला घोटते पाया था
फैक्ट्री से निकलते हुए
दिनेश अपनी तनख्वाह के
रुपये गिन रहा था
माँ को हो रहे कष्ट के बारे में
सोचते हुए माँ से आज एक
बढ़िया गरम दुशाला लेकर
आने का सुबह ही
वादा कर आया था
तभी रास्ते में मोबाइल घनघनाया
उधर से फोन पर
पत्नी को पाया
मेरी माँ आज शाम को
आपकी माँ को देखने आ रही है
कुछ पोते पोतियों को भी
अपने साथ ला रही है
नाश्ते में चुरा मटर और गाजर के
हलवे का पत्नी से फरमान पाया
ऊसका मन झुझलाया
मरता क्या न करता
सभी समानो के साथ फिर भी
अपनी माँ के लिए
भविष्य के वित्तीय संकतो से अंजान
एक बढ़िया गरम दुशाला
आखिर खरीद ही लिया
और देखते ही देखते
घर आ गया
पत्नी ने शीघ्रता से आगे बढ़
उसके हाथ के बोझ को हल्का किया
महंगा बढ़िया दुशाला देख
उसका दिल बाग बाग हो गया
तुरन्त उसे अपनी माँ को
ओढ़ते हुए बोली
देखो मम्मी आपके दामाद
मेरे दिल की बात
कितनी जल्दी जान जाते है
सच ये आपको कितने मानते है
आपके लिए कुछ न कुछ
करते ही रहते है
इसीलिये तो सभी रिश्तेदार
हमसे इतना जलते है
सामने दिनेश के माँ
खामोश खड़ी पूरे घटनाक्रम का
मूर्तिवत अध्ययन कर रही थी
अपने बच्चे के अरमानो की होली
जलते हुए बेबस देख रही थी
साथ ही दिनेश की आँखों में
अपने लिये एक विशेष
तड़प भी पा रही थी
उसे अपराधबोध से
बचाने के लिए
उसे आँखों ही आँखों में
दिलासा दे रही थी
साथ ही बहू के माँ के सामने
बहू के तरोफो के पुल भी
धाराप्रवाह बाधे चली
जा रही थी
निर्मेश
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