कभी घिस्सू और
माधो का गाँव
प्रेरणा स्रोत रहा था
उपन्यास सम्राट की लेखनी का
आज जगमगा रहा था
पिछली रात से घिस्सू
और माधो के पोते
बाल्टी और ब्रश लिए
प्रेमचंद की कर्म स्थली पर
रंग रोगन कर रहे थे
गाँव की सड़को को ठीक ठाक
करने में लगे थे
उन्हें पता चला है कि
मुंशीजी की पुण्यतिथि पर
कुछ खास लोग आने वाले है
उनके लिखे कुछ खास तोहफे
लाने वाले है
हामिद का चचा जान पोता
जी की रमजान में तक़रीबन
हर रोजा रहने का
प्रयास कर रहा था
बड़ी लगन से गाँव की पगडंडियों
पर मिट्टी डालने का कार्य कर रहा था
साथ ही सोचता जा रहा था
कि खुद न सही
सरकार की इबादत से
रहमतो की बरसात होगी
शायद अब किसी दादी की
चिमटे के अभाव में
हाथ नहीं जलेगी
धनिया की नतनी जो
अब इसी गाँव में आकर
बस गयी थी
आज शाम को प्रस्तावित
पूस की रात के मंचन की
प्रतीक्षा कर रही थी
उसे लगा की शायद
इसी बहाने उसकी नाना नानी
व उनके जज्बातों से
पुनः मुलाकात होगी
अपनी तमाम शिकायते उनके साथ
शेयर करने में उसे
कितनी ख़ुशी होगी
तभी हूटरो की आवाज से
वातावरण में गर्माहट छा गया
तमाम सरकारी अमला अलर्ट हो गया
पीछे हटो पीछे हटो की
आवाज ने सबको चौकाया
कुछ लोग आये
दीप जलाये
नारियल फोड़े गए
संभ्रांत से दीख रहे कुछ
लोगो ने माइक पर
भाषण भी दिया
कैमरे की फ्लश लैटो से
वातावरण जगमगाया
बाद उसके जैम कर नाश्ता किया
पूरा गाँव अवाक् यह सब
ठगा सा ललचाई नज़रों से
नाश्ते की ओर देखता रहा
जींस और पेंट जैसे आधुनिक
पहनावे में आये लोगो ने
अपनी वैन में जाकर
धोती और कुरता पहना
नुक्कड़ नाटको की तर्ज पर
पता नहीं क्या क्या नौटंकी किया
थोड़ी देर में सब समेट
एक दिवास्वप्न की तर्ज पर
वापस चले गए
घिस्सू माधो और धनिया के परिजन
अपने पूर्वजो के साथ हो रहे
इस मजाक को देखकर
सकते में रह गए
सोच रहे थे की
उनके दादा दादियों की
क्रन्तिकारी कहानियों के द्वारा
मुंशीजी के सामाजिक दर्शन पर
आज भी लोग सिर्फ रोटिया
सेक रहे है
सरकारी अमले भी बस
खानापूर्ति में लगे है
हमारा तो सफ़र जहा से
मुंशीजी ने प्रारंभ किया था
वह से हमें सामाजिक
चेतना की दरकार में
और आगे जाना था
पर अफ़सोस हम आज भी वही पड़े है
अपनी मुठ्ठी भर जमीन पर
खेती कर गुजर बसर
कर रहे है
कहा तो उन्हें एक नए
सुबह की उम्मीद थी
पर इस फीकी शाम ने
उनकी आशाओ पर
एक बार पुनः
पानी फेर दी थी
निर्मेश