गोधूलि आज की शान्त दीखती
विषम वेदना बनी अतीत अहि
ले नूतन संकल्पो को हिय में
नूतन वर्ष आगमनित प्रतीत है
नभचर युवा और उनके शिशु
खुली हवा में लेंगे साँस
नूतन बल अब होगा संचारित
जिनके चलते थे स्वाँस प्रस्वास
ओंस बिंदु कल के प्रभात के
कोमल पत्तों पर ढुलकेगे
समनित सीप बिंदु मोती बन
हमको भ्रम में फिर डालेंगे
भये भोर जो कमल पुंज
थे मूंद लिया करते नयन
आतुर स्वागत कर नए वर्ष का
तभी करेंगे कल वो शयन
वर्ष पर्यन्त सफ़र कर सूरज
थक कर हो गया है अस्त
खग समूह उड़ चले नीड़ को
कल के स्वप्न में है वो मस्त
मलय पवन से सरोबार
पनघट फिर से होगे गुलजार
नूतन परिधानो में सजी
प्रकृति धरा का करे श्रृंगार
मृग शावक सरपट दौड़ चले
व्याघ्र साथ करता प्रस्थान
नए भास्कर की किरणो ने
दिया उन्हें है अभयदान
प्रकटी जीवरूप में आत्मा
कहलाता है यही वो जीवन
रूठ जीव से त्याग तनो को
प्रारूप आत्मा का है मारण
असत अहंकार और पाखंड का
जीवन से कर सदा त्याग
सुबरन सरिस इस पावन तन का
लक्ष्य नहीं है भोग विलास
इस तन में तप कि ऊर्जा भर
आओं ले एक नया संकल्प
सुर दुर्लभ इस तन का प्यारे
है और नहीं कोई विकल्प
सत्य धर्म कर्त्तव्य परायणता
ये दूर हो चुके हमसे आदर्श
पुनः प्रतिष्ठित करना होगा
यदी धरा को बनना स्वर्ग
बैठ गगन में ऋषिमंडल
करते है सामूहिक विमर्श
आसन्न सभी विभीषिकाओं पर
दे रहे है अपने परामर्श
जब दस्तक देती पल में मौत
तब जीवन मूल्य समझ में आता
नूतन रवि की कोमल किरणे
सच कहो किसे है नहि भाता
संकट इस युग का भीषण
निज आकांक्षाओं की त्वरित पूर्ति
आदर्श त्याग हम रामकृष्ण की
उनकी बैठाते नित नई मूर्ति
अति आकाँक्षाओं की मृगतृष्णा से
आओं विलग करे अपने को
अपने अतीत के आदर्शों से
पूर्ण करे निज सपने को
नव वर्ष मंगलमय हो
विषम वेदना बनी अतीत अहि
ले नूतन संकल्पो को हिय में
नूतन वर्ष आगमनित प्रतीत है
नभचर युवा और उनके शिशु
खुली हवा में लेंगे साँस
नूतन बल अब होगा संचारित
जिनके चलते थे स्वाँस प्रस्वास
ओंस बिंदु कल के प्रभात के
कोमल पत्तों पर ढुलकेगे
समनित सीप बिंदु मोती बन
हमको भ्रम में फिर डालेंगे
भये भोर जो कमल पुंज
थे मूंद लिया करते नयन
आतुर स्वागत कर नए वर्ष का
तभी करेंगे कल वो शयन
वर्ष पर्यन्त सफ़र कर सूरज
थक कर हो गया है अस्त
खग समूह उड़ चले नीड़ को
कल के स्वप्न में है वो मस्त
मलय पवन से सरोबार
पनघट फिर से होगे गुलजार
नूतन परिधानो में सजी
प्रकृति धरा का करे श्रृंगार
मृग शावक सरपट दौड़ चले
व्याघ्र साथ करता प्रस्थान
नए भास्कर की किरणो ने
दिया उन्हें है अभयदान
प्रकटी जीवरूप में आत्मा
कहलाता है यही वो जीवन
रूठ जीव से त्याग तनो को
प्रारूप आत्मा का है मारण
असत अहंकार और पाखंड का
जीवन से कर सदा त्याग
सुबरन सरिस इस पावन तन का
लक्ष्य नहीं है भोग विलास
इस तन में तप कि ऊर्जा भर
आओं ले एक नया संकल्प
सुर दुर्लभ इस तन का प्यारे
है और नहीं कोई विकल्प
सत्य धर्म कर्त्तव्य परायणता
ये दूर हो चुके हमसे आदर्श
पुनः प्रतिष्ठित करना होगा
यदी धरा को बनना स्वर्ग
बैठ गगन में ऋषिमंडल
करते है सामूहिक विमर्श
आसन्न सभी विभीषिकाओं पर
दे रहे है अपने परामर्श
जब दस्तक देती पल में मौत
तब जीवन मूल्य समझ में आता
नूतन रवि की कोमल किरणे
सच कहो किसे है नहि भाता
संकट इस युग का भीषण
निज आकांक्षाओं की त्वरित पूर्ति
आदर्श त्याग हम रामकृष्ण की
उनकी बैठाते नित नई मूर्ति
अति आकाँक्षाओं की मृगतृष्णा से
आओं विलग करे अपने को
अपने अतीत के आदर्शों से
पूर्ण करे निज सपने को
नव वर्ष मंगलमय हो