बुधवार, 25 दिसंबर 2013

चचा

सहसा
ताड़ ताड़ की आवाज ने
भोर के सन्नाटे को चीर दिया था
मैं मॉर्निंग वाक हेतु
बी एच यू  गेट पर लगभग
पहुच चुका था

हाँ हाँ करते
जैसे ही करीब पहुँचा
तब तक हाथ के साथ
दस पाँच लात भी उस
रिक्शेवाले को पड़ चुके थे
उनमे से एक युवक
अपनी कमीज की बांह चढ़ाते हुए
मेरी ओर  देखते बोला
पापा की असपताल से छुट्टी होइ चुकी है
उनका घर ले जायेका है
जल्दी से दवा चालू करेका है
साले को कब से दूर से
ही आवाज दे रहे है
रोक रोक ही नहीं रहा है
अरे सवारी नाही ढोये का है तो
काहे रिक्शा निकाले है

रिक्शावाला
कुहनी में मुँह  छिपाये
अपना रिक्शा छोड़
जमीन पर बैठ चुका था
फटे शाल से बह रहे खून को
पोछने का असफल
प्रयास कर रहा था
मैंने उन नवयुवको को
धैर्य की नसीहत देते हुए
ऐसा करने से डाँटते हुए रोका
साथ ही निराला के उस पात्र को
उठाने में लग गया

लगभग सत्तर साल का
वह एक कृशकाय वृद्ध था
विवश बेशक विशेष
परिस्थितियों में ही वह
रिक्शा चला रहा होगा
वरना इस पूस की ठण्ड में
वह भी तमाम कुलीनों की तरह
रजाई में पड़ा
गरम चाय के साथ चुडा मटर  का
आनंद ले रहा होता

इतना तो समझ इन युवकों में
होनी ही चाहिए थी
हो सकता है सवारी ढोते ढोते
वह थक गया होगा
याकि उम्र के इस पड़ाव पर
निकला तो होगा कमाने
पर ठण्ड व कमजोरी से निराश
घर वापस जा रहा होगा

पर धैर्यहीन आज की पीढ़ी
जो न्यूनतम व्यय पर
अधिकतम  सुविधा की आदी
होती जा रही है
कम समय में ही सब कुछ
पा लेने की जिजीविषिका
पाले जा रही है
फलस्वरूप
मानवीय मूल्यों से दूर होकर
अनवरत खोखली होती जा रही है
उनके पास इतना समय कहाँ
इतना सोचने का
पारिवारिक और सामाजिक
विवेक का

मैंने पूछा
क्या बात है चचा
अवाक्  शून्य में देखते हुए पुनः
वह मेरी ओर देख रहा था
जैसे उसे कुछ सुनाई
नहीं दे रहा था
पुनः मैंने जरा जोर से  पूछा
पुनः उसे अवाक् पाया
कोई प्रतिक्रिया न देख
उसके करीब गया
एकबारगी मुझे अपने पास
आता देख वह डर गया
शायद उन युवको का करीबी जान
भय से सिहर गया

पर शीघ्र जैसे ही उसने
दया के साथ सहानुभूति की
कोमल स्पर्श पायी
मुहँ से रक्त के साथ
उसकी बूढी आँखे बह आयी

बोला भइया उमर होइ गवा है
पिछले छह महीना से
हमका तनी कम सुनावत है
पर परसोईयां से लागत आ
कि बहुते कम सुनाता
एहि पाछे हमका न सुनावा
नाही त भइया कमवही वदे न ई
ठण्ड मा निकलल हई

छोड़ी
चली आयी कहाँ चली

चचा हमका नाही
उन सबका जायेका है
कहते जैसे ही
पलट कर देखा
संवेदनहीन उन देश के पुरोधों को
बहरे रिक्शेवाले चचा को छोड़
अपने पिता के साथ
गायब पाया
निर्मेष

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