मंगलवार, 2 नवंबर 2010

लो देख लो मेरी दुनिया

घर लौटने पर
छोटू ने सुनाया
ताई के फोन
आने की बात बताया
भैया बहुत बीमार है
तुरंत कानपुर है बुलाया
मैंने सोचा
भैया के चार बच्चे
सभी व्यवस्थित
लेकर पद अच्छे
ऐसे में मैं कहाँ से भाया
जेहन में सारा
अतीत नजर आया
की किस तरह भैया ने बच्चो के
शिक्षा दीक्षा की दे दुहाई
अम्मा बापू परिवार व
गाँव को ठुकराया
अपने पारिवारिक सामाजिक
जिम्मेदारियों से मुख मोड़ कर
कानपुर में एक आलीशान
मकान बनवाया
घर और गाँव को एकदम
से ही भुलाया
मुझे याद है बापू की तेरहवी के लिए भी
बड़ी मिन्नत के बाद समय निकाला
खैर बिना रुके शाम के ट्रेन से ही
मैंने कानपुर का किया रुख
वहां काप गया
देखकर भैया भाभी का दुःख
रुग्ण जर्जर और अशक्त भैया की
एक लम्बे अंतराल के बाद
मुझे देख बाछे खिल गयी
मानो जिसकी हो प्रतीक्षा
वो चीज मिल गयी
मै भी मूर्तिवत भैया के गले लग गया
अविरल आसुओं की धार
कोरो से बह चली
मैं यंत्रवत सोचता रहा
हैरान होकर कभी भैया
कभी भाभी को देखता रहा
भाभी को आंचल से अपने आसुओं को
पोछने की असफल चेष्टा को
अनदेखा करता रहा
भैया इ क्या हाल बना रखा है
कहते जब मैंने उनकी गोद में
अपना सर रखा
बापू को भैया के रूप में
मानो जीवित देखा
स्नेह से जब सर में मेरे वो उगलिया फिराने लगे
उनकी गोद में अमरुद और आम के
पेड़ों का बचपन देखा
सयंत होकर मैंने पूछा
विनोद अंकुर और मुन्ना हैं कहाँ
अभी तक आई नहीं क्यों मुनिया
भैया ने दो तिन छोटे पार्सल
और कुछ चिट्ठियां मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा
लो देख लो मेरी दुनिया
कापते हाथो से मै एक एक पत्र पढने लगा
विनोद ने लिखा
कार्यालयी कार्य से बाहर जा रहा हूँ
आपके बताये कर्मयोग के रस्ते पर चल रहा हूँ
कुछ रुपये भेज रहा हूँ
साथ में आपके स्वस्थ होने की कामना कर रहा हूँ
अंकुर ने भी अपनी असमर्थता कुछ इस तरह सुनाई
नेहा के परीक्षा की बात बताई
आगे लिखा पापा हम आ नहीं सकते
आपको है गुड विशेश भेजते
आगे का हाल भेजिएगा
कोई जरूरत हो तो निसंकोच कहियेगा
मुन्ना की व्यथा भी इनसे अलग नहीं थी
हम तो आने के लिए रहे ही थे सोच
अचानक मंजू के पैर में आ गयी मोच
कुछ रुपये भेज रहा हूँ
अंकुर को फोन कर रहा हूँ
उम्मीद है आप जल्द ठीक हो जायेगे
हम पुनः अच्छी खबर पाएंगे
मुनिया ने अपने पत्र में
अपने पति के ट्रान्सफर का दे हवाला
आने से ही कर लिया किनारा
मैं अपने को सँभालने का
करने लगा असफल प्रयास
धुम से बिस्तर पर बैठ
सोचने लगा कैसी होती है आस
सारा संसार मुझे घूमता नजर आया
लगा इतना खोने के बाद
भैया ने क्या पाया
भरी आँखों से भैया ने कहा
परिवार क्या होता है ये आज मैं जान पाया
पर सच जो मैंने बोया वही तो है पाया
भाभी ने कहा लल्ला
क्या करे बेटों की भी है
अपनी अपनी मज़बूरी
वर्ना है ही क्या ये दूरी
एक ओर जहा भैया के अन्दर
पश्चाताप के आंसू पा रहा
वही भाभी को आज भी
जहा का तहा पा रहा
मन अजीब अंतर्द्वान्दा में फस गया
जमाना आज की दस्ता कह गया
तभी भैया ने रखा मेरे सर पर अपना हाथ
निरीह नजरो से कहा
निर्मेश चाहिए तुम्हारा साथ
मुझे अपने वर्तमान पर
बेहद तरस आया
तुलना करने पर
अपने अतीत को बेहतर पाया

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं...

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  2. बहुत सुन्दर.....

    आप को सपरिवार दीवाली की शुभकामनाएँ|

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  3. सुंदर प्रस्तुति , शुभकामनाये

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  4. हर पीढ़ी के माता-पिता की यही मार्मिक व्यथा है...
    आपने युवाओं को समझने का एक अवसर दिया है,
    तरक्की और सुखी जीवन के आस में हमें अपनी जड़ों को काट कर अलग नहीं करना चाहिए...
    बल्कि अपनी शाखाओं के सहारे उन्हें मजबूती से थामे रहना चाहिए...
    अलगाव तो प्रकृति का नियम है,
    परन्तु उस अलगाव में निहित बंधन को तोड़ देना अप्राकृतिक है...

    धन्यवाद इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति साझा करने हेतु....
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  5. बहुत अच्छा लिखा है आपने..|दीपावली मंगलमय हो|शुभकामनाये|

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  6. बेनामी3.11.10

    "जैस बोओगे वैस ही काटोगे" को शसक्त उदहारण पेश करती सच्ची और बहुत अच्छी रचना - - शानदार रचना के लिए बधाई तथा हार्दिक शुभकामनाएं

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  7. लेखन अपने आपमें रचनाधर्मिता का परिचायक है. लिखना जारी रखें, बेशक कोई समर्थन करे या नहीं!
    बिना आलोचना के भी लिखने का मजा नहीं!

    यदि समय हो तो आप निम्न ब्लॉग पर लीक से हटकर एक लेख
    "आपने पुलिस के लिए क्या किया है?"
    पढ़ सकते है.

    http://baasvoice.blogspot.com/
    Thanks.

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. शुक्रिया.
    ---
    कुछ ग़मों के दीये

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