चल हट बुढ़िया
देखती नहीं पुलिस केस है
कल से हम राजनवा के बारे में
तुमसे पूछ रहे है
अभी तक तो कहती रही कि
तुम्हे उसका पता नहीं
आज जब उसका डकैती के दौरान
इनकौन्टर हो गया
तो क्यों चिल्ला रही
अभी तक तो डकैती का
मॉल दकारती रही
अब मुंह देख कर क्या करोगी
उसे अब देखने से क्या फायदा
क्या तुम अब उसे जिन्दा करोगी
नाही भईया हमार बबुआ
अइसन कबहू ना रहा
जरूर तू सभे के कौनो
ग़लतफ़हमी होई रहा
हाँ एका संगत बीच में
कछु गलत होई गवा रहा
स्कूल से भाग के
सनेमा वनेमा देखन लगा रहा
पर हमरी समझ से इतना भी नाही
कि ओके साथ हमका भी
ई दिन देखे के पड़ा
अब बाबू केकरा उम्मीद पर
बाकि जिनगी कटी
एक बबुआ का त हम
बचपन्वे मा खो दी रही
अनहि पर सगरो उम्मीद रही
कहते बुधिया विलाप करते हुए
दहाड़ मार कर गिर पड़ी
ओंठों के बीच अनवरत बुदबुदाती रही
बाबू फिर से विनती करत तानी
तनी हमरे बाबू क चेहरवा त दिखा दिहित
होई सकित है अभी जिन्दा होखब
हे भगवन अब हम का करब
दीना भगत उसको
संभालने में लग गया
अपने कलेजे पर पत्थर रख कर
गमछे के एक कोर से कभी
अपने आंसुओं को पोछता
कभी राजन की माँ को संभालता
उसके बेहोश चेहरे पर कभी
पास के सरकारी नल में
गमछे को भिगोकर जल डालता
अतीत में चला गया
कितनी मनौतियों के उपरांत
पहले बेटे के चेचक में गुजरने के बाद
राजन का जन्म हुआ था
याद नहीं न जाने कितनी बार
रिक्शा चला कर आने पर
थके होने के उपरांत भी
अपने बबुआ के लिए वह
कितनी बार घोडा बना था
अपने पसीने की एक एक बूँद से
उसने उसे बड़े ही हसरतो से पाला था
बुधिया और उसके जीवन का
वही तो एकमात्र सहारा था
उसे पूर विश्वास था कि
ऐसा राजन के साथ कुछ भी नहीं था
कि उसका इस तरह
इनकौन्टर किया जाता
हाँ रसूखवालों की चमचागिरी ने
अपना कोटा पूरा करने के लिए
उसे असमय समाप्त कर डाला था
बीती रात से ही रोते रोते
उसके आँखों के आंसू तो
लगभग सूख ही चले थे
पर पत्नी के साथ बेटे के पहचान
और अंतिम दर्शन की लालसा में
वे दोनों सुबह से वहा
बिना खाए पिए पड़े थे
बेटे से हाथ धो चुके रामदीन को
अब बुधिया की चिंता सता रही थी
तभी उसके दिमाक में
एक बात आ गयी थी
उसने अपने फटे कमीज से
एक बीस का मुड़ा मैला नोट निकला
उसे पुलिसवाले के जेब में डाला
तब उसने पसीजते हुए कहा
बड़े देर से तुम लोग समझते हो
जाओ उधर जाकर उसका मुंह देख लो
ससंकित मन व कापते पैरो से
बुधिया को लेकर वह आगे बढा
भगवन करे वह राजन न हो सोचता रहा
जैसे ही उसने कफ़न को हटाया
उसे देखने को बुधिया आगे बढ़ी
दहाड़ मार कर उसके लाश पर गिर पड़ी
रामदीन उसको उठाने के लिए
तेजी से आगे बढ़ा
तभी एक और मौत से
उसका पाला पड़ा
बुधिया भी उसे छोड़ अपनी
अंतिम यात्रा पर जा चुकी थी
रामदीन की झरझर अवसादग्रस्त आंखे
किंकर्तव्य विमूढ़
असहाय शून्य में ताकती रही
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