बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

लक्ष्मी और गणेश का पूजन

दिहाड़ी सुजीत 
ने लगभग  सुबकते हुए 
ऑफिस में प्रवेश किया 
उसके हालत दे ख 
मन मेरा एक अज्ञात आशंका 
से कॉप  गया 

सर मेरी साइकिल 
कार्यालय  गेट के सामने  से 
अचानक से खो गयी 
मैं घबराया  अरे 
अभी परसो तो ही 
खरीदी थी तुमने नयी 

क्या  ताला नहीं लगाया था 
सर एक लगाया था 
अरे भाई समय ख़राब है 
सीकड़ मार कर रखना चाहिए था 
मेरा दुर्भाग्य है सर 
अब क्या कहियेगा 
किसी तरह एक मित्र से 
उधार लेकर ख़रीदा था 
पहली तन्ख्वाह पर पैसा वापस 
करने का वादा किया था 
अब कैसे क्या होगा 
कहते हुए वह 
कार्यालय के स्टूल पर बैठ गया 
हर एक कि ओर याचना की 
नजरो से देख रहा 

कोई एफ आई आर 
कराने को कह रहा था 
कोई बड़े साहब से मिलने की 
बात कह रहा था 
सभी लोग कुछ न कुछ 
अपनी ओर से राय दे रहे थे 
पर उसके घाव को 
भर नहीं पा  रहे थे 

फा इ लो  में तल्लीन होने का 
अभिनय करते हुए 
मै भी उससे नजर मिलाने का 
साहस नहीं कर पा रहा था 
वह बड़े ही मासूमियत और 
आशा के साथ मुझे 
अनवरत निहार रहा था 
शायद वह मुझमे 
किसी सम्भावना और 
एक हल को तलाश रहा था 

अभी पंद्रह दिन 
पहले ही तो 
उसने किसी तरह जुगाड़ से 
दिहाड़ी पर मेरे कार्यालयमे 
अनुसेवक के पद पर 
ज्वाइन किया था 
कुछ ही दिनों में अपनी 
समर्पण और सेवा से 
हम सभी का दिल जीत लिया था 

नित्य कि सत्तर किमी की 
उसके घर से कार्यालय की दूरी 
ऊपर से उधारी साइकिल कि मजबूरी 
से व्यथित होकर 
किसी तरह उक्त साइकिल का 
जुगाड़ किया था 
बड़े ही परिश्रम से 
अपने जीवन की गाड़ी को 
पटरी पर लाने  का प्रयास कर रहा था 
एक पैसे की  अभी तक आय नहीं 
ऊपर से उधारी नयी 
साइकिल भी चली गयी 
इतनी दूरी कि यात्रा अब 
वह कैसे करेगा 
खाली हाथ पत्नी और परिवार का 
सामना कैसे करेगा 

यही सब सोचते  अचानक 
मेरी चेतना ने मुझे 
एकदम से झकझोर कर जगाया 
मैंने एक सफल उम्मीद से 
तुरंत घर का फोन घनघनाया 
पत्नी सीमा से 
रिक्की कि साइकिल के
बारे में बात की 
जो उसके दिल्ली प्रवास से 
पिछले दो माह से अच्छी 
हालत में खाली थी पड़ी 
सकारात्मक स्वीकृत पाकर 
मैंने अपने सहयोगी बिरेन्द्र के साथ 
सुजीत को घर पठाया 
उसे अपनी उस साइकिल को 
एकदम से दिलवाया 

वर्त्तमान परिवेश में 
कल्पना से परे एक 
त्वरित समाधान देख 
उसने कृतज्ञता से मेरी ओर 
भरी आँखों से देखा 
कुछ न कह पाने कि स्थिति में भी 
उसकी आँखों में मैंने एक 
उपकृत सैलाब देखा 
साइकिल खोने कि उसकी व्यथा 
उसके वृहत्तर प्रभाव व 
प्रस्तुत तात्कालिक समाधान के मध्य 
विचरित मै कवी ह्रदय 
शून्य में खो गया 
मुझे लगा कि मैंने 
लक्ष्मी और गणेश का 
दीपावली के शुभावसर पर 
विधिवत पूजन 
कर लिया 

निर्मेष 

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