कउने दिशा में
लेके चला रे बटोहिआ
गाते गाते आठवर्षिया
बच्ची का गला
रह रह कर फॅस रहा था
उसका दसवर्षीय भाई
साथ में बैठा ढोलक
बजा रहा था
यह दृश्य रामनगर की
कोट विदाई रामलीला के दौरान
सजे बाज़ार के एक
कोने का था
लोगो का हुज़ूम
सतत आ जा रहा था
उनकी संवेदनाओ का
किसी पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ रहा था
ठण्ड भी आहिस्ता से
दस्तक दे चुकी थी
कृशकाय
एक फटे बनियान और एक फ्रॉक में
उन दोनों कि दुकान
सजी थी
कोई दयालू
आते जाते जैसे ही
कुछ सिक्के उनके
कटोरे में डालता
उनके सुरों में एकाएक
कुछ पलों के लिए
तेजी आ जाता
पुनः किसी दूसरे दयावान
की प्रतीक्षा में उनका स्वर
क्रमशः मद्धम हो जाता
उधर रामलीला को ओर
भगवान राम सबको
एक एक वस्त्र देकर
अश्रु पूरित नेत्रों से
कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए
विदा कर रहे थे
वो दोनों भी टकटकी लगाये
उस दृश्य को अनवरत
देख रहे थे
साथ ही भोर कि ठण्ड से
चिहुक भी रहे थे
सम्भवतः वे सोच रहे थे
कि काश भगवान कि नजर
उनकी तरफ भी
पड़ जाय
तो शायद वे भी
तर जाये
निर्मेष