गुरुवार, 14 नवंबर 2013

मन्नू क बालदिवस

मन्नू क  बालदिवस

मन्नू के दोनों हाथ 
चाक पर तेजी से चल रहे थे 
एक एक कुल्हड़ अपने 
आकार ले रहे थे 
मन्नू को आज अपना 
कम समाप्त करने की कुछ 
ज्यादा ही जल्दी थी 
स्कूल के बल दिवस में 
शिरकत करने  की उसकी 
तीव्र मंशा थी 

सुना था कुछ लोग 
तमाम उपहार लेकर आयेंगे 
उसे उसके जैसे गरीब बच्चो के बीच 
वितरित कर जायेगे 

मन्नू के बापू 
पिछले साल टी बी से 
पीड़ित ईलाज के अभाव में 
असमय ही चल बसे 
मन्नू के साथ पूरे परिवार को 
बेसहारा छोड़ गए 

माँ के प्रयास से मन्नू ने 
कुल्हड़ गढ़ना सीख लिया 
किसी तरह रोजी रोटी का 
एक जरिया निकाल लिया 
साथ ही पढ़ लिख कर 
कुछ करने की तीव्र चाह ने 
मन्नू पर बारह की उम्र में ही 
दोहरी जिम्मेदारियो को 
असमय ही लाद  दिया था 
उसे समय से पूर्व ही 
समझदार बना दिया था 

जल्दी से कम समाप्त कर 
मन्नू तैयार होकर 
स्कूल की ओर  भागा 
पर उपहारों की लाइन से 
तुरत निकाला गया वह अभागा 
कि स्कूल ड्रेस में नहीं 
आया था 
जिसके लिए पिछले कई दिनों से 
माँ से वह लगातार मिन्नतें 
कर रहा था 
पर माँ ने कभी पानी के टैक्स 
कभी मकान टैक्स 
तो कभी बिजली के बिल का 
देकर हवाला 
हर बार उसके  ड्रेस की 
मांग को टाला 

लाइन से दूर खड़ा 
मन्नू स्कूटी और कार से 
आये  स्कूल ड्रेस में सजे 
बच्चों को  तमाम 
सुन्दर सुन्दर उपहार लेकर 
जाते हुए 
हसरत भरी निगाहों से 
अनवरत देख रहा था 
उन उपहारों की सार्थकता के साथ 
बालदिवस के निहितार्थ को 
तलाश रहा था 
साथ ही अपनी किस्मत  और 
भाविष्य के बारे में आशंकित 
कुछ सोच रहा था 

निर्मेष 

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