बुधवार, 10 सितंबर 2014

शारदा काकी

अभी कल 
शाम को ही 
अस्पताल से निराश 
लौटी शारदा काकी के पास 
मैं काफी देर तक 
बैठा था 
उनके चेहरे के भावों को 
पढ़ने का प्रयास 
कर रहा था 

पुनः आज सुबह से ही 
कई बार वो हमको 
बुला चुकी थी 
बार बार हमसे सुई 
लगवाने को कह रही थी 
काकी के पास बैठा 
उनके क्रमशः
ठन्डे हो रहे बदन 
और मंद पड़ती 
नाड़ी को देख 
मुझे आज उनके इस 
नश्वर देह को छोड़ने का 
पूर्वाभास हो रहा था 
इसीलिए मै चाह कर भी 
वहाँ से हिल नहीं
पा रहा था 
उनसे बातचीत 
लगातार चल रही थी 
पास में उनकी बहू और 
बेटी बैठी थी 
मैं जैसे ही पुनः एकबार 
उठकर चलना चाहा 
काकी ने मेरा हाथ 
अपनी ओर जोर से खीच कर 
बैठने का ईशारा किया 
बैठने पर काकी ने 
मेरे हाथ को जोर से 
अपनी ओर भींच लिया 
मुझे जीभर के देखा 
आँखों ही आँखों में 
मुझसे अपने परिवार के लिए 
कुछ कमिटमेंट लिया 
हमसे आस्वस्त हो 
उनकी आँखे एकाएक 
धीरे धीरे बंद होने लगी थी 
शायद उनकी आत्मा की 
अनंत यात्रा 
प्रारम्भ होने लगी थी 

मैं चिल्लाया 
पास में बैठी बेटी बहू व 
पौत्रों से 
अपनी संस्कृति के अनुसार 
तुलसी गंगाजल 
पिलवाया 

राजू 
उनका एकमात्र पुत्र 
जिस पर हमेशा 
वो जान देती थी 
उनके कितने ही 
गुनाहों को माफ़ कर 
वह अक्सर ही खून का 
घूँट पीती थी 

जिससे इस दिन के लिए 
उन्होंने न जाने कितने ही 
उम्मीदो को पाला था
कम से कम  आज 
अपने सामने होने का  
आस पाला था 
पर वह आज 
सुबह से ही नशे में टुन्न 
छत पर पड़ा था 
लगता था काकी ने 
ऊब कर आज उससे 
दूरी बनाये रखने का 
फैसला किया था 
इसीलिए आज उसे 
एक बार भी याद 
नहीं किया था 
कुछ खाने की बात पर 
खुद को भी पिलाने की 
बात कहा था 

मेरे आवाज देने पर 
राजू एक अवांछित स्थिति में 
नीचे आया 
जैसे ही चम्मच को उसने 
काकी के मुँह से सटाया 
इसके पूर्व ही काकी 
इस दुनिया को छोड़ चली थी 
राजू के दिल में 
जिंदगी भर के लिए 
इक टीस छोड़ गयी थी 

बहू व बेटी के मध्य 
नेह की श्रेष्ठता के 
अनुत्तरित प्रश्न के साथ 
छोड़ गयी थी एक सवाल 
कि रक्तजनित रिश्तों के ऊपर 
लोकजनित रिश्तों की 
मान्यता पर क्यों 
होता है बवाल 

निर्मेष 

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