बुधवार, 17 सितंबर 2014

गया श्राद्ध

कान में 
ईयरफोन लगाये 
मोबाइल से गाना 
सुनने में मस्त वीरू 
मजदूर मंडी में 
अपनी बारी की प्रतीक्षा 
कर रहा था 
सुबह  का दस 
पार हो रहा था 
मै भी एक मजदूर की 
तलाश में वहाँ 
उपस्थित था 

मुझे देखते ही वह 
कान से  इयरफोन 
निकालते हुए 
मेरी ओर लपका 
साथ के आठ दस 
मजदूर भी आगे लपके 
कार्य की प्रकृति और 
रेट पर चर्चा हो रहा था 
पर वह एक ओर 
किनारे खड़ा था 
अपनी भाव भंगिमा से 
मुझे मुग्ध कर रहा था 

मैंने उसको पास बुलाया 
काम करना है 
करना है साब 
क्या लोगे 
दो सौ साठ का रेट 
चल रहा है 
मगर इग्यारह बज रहे है 
कान से इयरफोन 
निकालते वह बोला
साब एक घंटा बेसी 
खटवा लेना  
आज सुबह ही एक ट्रक 
बालू ठीके पर फेका है 
शाम को भी गिट्टी का 
एक ठेका लिया है 

कितना काम करोगे यार 
करना पड़ेगा साब 
बाबू का गया श्राद्ध 
आज से आठवें दिन करेका है 
माई का फोन परसों अव रहे 
कि बचवा तनी कस के 
कमावे का है 
बहुत दिनन से तुम्हरे 
बाबू के गया बिठावे का 
काम पड़ा है 
उनकी आत्मा बेचैन 
होइ रहित होइए 
पंडित जी बारह हजार का 
खर्चा बतावा रहेन 
वही पाछे हम हियन 
दिन रात खट्टित है 

बाबू के मरे 
कितना दिन हुआ 
साब दस साल के ऊपर 
होइ गवा 

खैर वह 
मेरे साथ आया 
दिन भर काम के उपरांत 
अपनी मजदूरी ले 
वापस चला गया 

शाम को 
किसी काम से 
मै उसी मजदूर मंडी 
की ओर जा रहा था 
एक जगह भीड़ देख 
आशंकावश 
ठिठक गया था 

सामने बीरू 
बेहोश पड़ा था 
उसके साथी बेचैन हो 
उसको पंखा झल रहे थे 
साथ साथ आपस में 
चर्चा कर रहे थे 
सरवा बाऊ के 
गया बिठावे वदे 
 जान देइ काम करित है 
ससुर  नाती नाही  
बाऊ  एका 
कब का चला गईंन 
इहो माई अउर नइकि
मेहरारू के छोड़ 
हुवन  जाये  
तैयारी करित है  

निर्मेष  


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