मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

मीठी वाणी से पाला

कार्यालय के

पुरे दिन की माथापच्ची से त्रस्त

कार्य की अधिकता से पस्त

दूर होते ही सूरज की छाया

मैं घर को लौट आया

की तभी एकाएक मेरा

मोबाइल घनघनाया

थके हाथो से मैंने मोबाइल को
कान पर लगाया
उधर से बहूत ही शांत धीर
व एक मधुर स्वर को पाया
लगा कानो में किसी ने
शहद घोल दिया हो
मिश्री से पूरे
बदन को तौल दिया हो
पूरे दिन के थकन से
मनो निजात मिल गयी हो
न चाहते हुए भी मानो
कोई सौगात मिल गयी हो

वस्तुतः
वह एक इन्वेस्टमेंट कम्पनी
की मुलाजिम थी
एक पौलिसी के लिए
पीछे पड़ी थी
मैंने पैसे के अभाव का देकर वास्ता
बंद करना ही चाहा था उसका रास्ता
तभी उसने कहा सर
प्लीज़ मेरी बात पहले सुन ले
फिर आपको जो लगे
गुण ले
मुझे उसकी आवाज की मधुरता ने
पुनः उसमे छिपी व्यथा ने
पूरी पवित्रता से
तरंगित कर डाला
एक अवांछित अनिच्छा से ही सही
उससे पर गया पला
बातें करते करते मुझे
हलकी नीद ने आगोश में ले लिया
तभी मेरी भार्या ने मुझे हिलाया
लिए हाथ में गरम चाय का प्याला

तब तलक उसकी बातें थी jaree
मुझे लगा की किस्मत की है वो मरी
लगता है टार्गेट की है लाचारी
करती भी क्या बेचारी
में थोडा द्रवित हुआ
फोन कटते हुए कहा की
अच्छा कल बिचार करेंगे
उसने तुरंत ही कहा सर
हम आपके फोन का सकारात्मक
पहल के साथ इंतजार करेंगे
चाय पीकर में सोचने लगा
मीठी वाणी का प्रभाव
लगता था की सारी थकन का
हो गया आभाव
आया रहीम की वो पंक्ति
जिसमे थी ये उक्ति
मीठी वाणी बोलिए मन का आप खोय
औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय
यह सोचते सोचते
मैंने उनसे कल मिलाने को
अपनी डायरी में सकारात्मक
तिप्परियों के साथ नोट कर डाला
बेशक मेरा भी पद गया था
मीठी वाणी से पाला
में लगा सोचने
की अगर इतनी ताकत है मीठी वाणी में
की कुछ ही मिनटों में
कर ले दुनिया मुठ्ठी में
तो फिर हम अपनी सर्दारीयत के लिए
कटु वचनों व कटु युद्धरत कर्मो का
लेते है क्यों सहारा
देकर दुहाई धर्मो का

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