मंगलवार, 29 मार्च 2011

गंतव्य

कार्यालयी कार्य से मैं
था लोखंवाला मुंबई के प्रवास पर
कार्य समाप्ति के उपरांत
स्थानीय एक मित्र ने बुलाया था
मुझे रात्रि सात बजे डिनर के लिए
अपने आवास पर

औपचारिक अभिवादन के साथ
चाय पीते हुए हो रही थी
बातें अतीत की सारी
पर कहीं भी दिख नहीं रही थी
डिनर की तैयारी

मैंने मेजबान मित्र से कहा
बॉस क्या खिला रहे हो आज डिनर में
मुझे निकलना है
आज की ही रात में

बोला चलते है काकोरी हाउस
जम के खायेंगे काकोरी कबाब
बड़ा उम्दा है उसका स्वाद
मैंने कहा काकोरी कबाब
यह क्या बला है
बोला क्या यार काकोरी हाउस का
काकोरी कबाब नहीं जानते हो
तुम यार हिंदुस्तान को
क्या पहचानते हो
अक्खा मुंबई कहलो या अक्खा हिंदुस्तान
या विदेशों तक में मशहूर है
इसका स्वाद ही तो हमारा गुरुर है

मैंने कहा यार मैं तो
काकोरी कांड के बारे में ही जानता हूँ
लखनऊ के पास एक गाँव है मानता हूँ
इससे अपने स्वतंत्रता का इतिहास पहचानता हूँ
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी आर्यसमाजी
रामप्रसाद बिस्मिल अस्फाकुल्लाह आजाद
आदि के बलिदानों को बस
इससे जुड़ा जानता हूँ

समीप में खड़ा उनका बेटा
आश्चर्य से मुझे देख रहा था
मानो मैं किसी
स्वप्न की बातें कर रहा था
मित्र ने कहा की हाँ हाँ कही पढ़ा है
किसी काकोरी कांड के बारे में
ठीक से मालूम नहीं मेरा नोलेज भी कम है
इतिहास के गलियारे में
छोडो आओ चले
काकोरी कबाब का लज्जत चखे
वहां की रंगीनियत को
जी भर कर देखें

मैं शून्य में ताकता रहा
अतीत में बिस्मिल के साथ
साक्षात्कार करता रहा
बिस्मिल कह रहे थे
क्या यही है हमारी भावी पीढ़ी
जो निसंकोच आगे बढ रही
लगा कर हमारे बलिदानों की सीढ़ी
क्या इन्ही दिनों के लिए हमने
राष्ट्रप्रेम के माले में त्याग और
बलिदानों की मोती पिरोई थी
हर बार इसी धरा पर आने के लिए
फांसी के समय ईश्वर से
अनुशंषा की थी
अपने परिवार की चिंता न कर
पुरे देश को अपना परिवार
समझाने की जुर्रत की थी

सब्र मेरा भी टूट चला था
आंसुओं ने भी आखों का साथ
देना छोड़ दिया था
बिह्वल नतमस्तक हो मैं कह रहा था
मान्यवर आप घबराये नहीं
केवल इन्हें ही अपना पीढ़ी माने नहीं
हाँ बेशक है ये अफ़सोस की बात
पर मानिये है ये अपवाद
आज भी हमारे जैसे बहुत लोग है
जो आप जैसे के
बलिदानों की कदर कर रहें है
आज जिस आबोहवा में हम
खुल कर सास ले रहे है
निसंदेह इसे आप ही की
देन मान रहे है

तैयार होकर मित्र ने
एकाएक हमें हिलाया
उस स्वप्न से मुझे जगाया
मैंने कहा मित्र मैं तो शाकाहारी हूँ
काकोरी कबाब का मेरे लिए
क्या औचित्य
मैं तो खाऊंगा वही
जो खाता हूँ नित्य
मेरा आपसे मिलने का ही
था उपक्रम
जो हो गया पूरा
आप काकोरी कबाब का स्वाद ले
अभी मेरा कुछ काम है अधूरा
कह मैं अपने
गंतव्य को चला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें