शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

१६ अगस्त ०० सच्चे सुराज की नीव




सुधी पाठकों इधर कई दिनों की छुट्टियाँ होने को हैं ऐसे में आपसे मुलाकात चार पाँच दिनों बाद ही हो पायेगी ऐसे में मेरी यह रचना रक्षाबंधन और १५ अगस्त को ध्यान में रख कर आपको समर्पित है आशा है आप सबका स्नेह पहले की तरह प्राप्त होगा एक बार पुनः आप सब को रक्षाबंधन और स्वतंत्रता की ढेर सारी बधाई के साथ आपका निर्मेश


ए मेरे देश के लोगो
क्यों रक्त हो चुका ठंडा
क्यों पड़ता नहीं असर है
चाहे खा ले कितने ही डंडा

पिछले दिनों की घटनाये
जिसमे क्या क्या न हुआ था
शर्मशार भई मर्यादा
खोना अब कुछ शेष न था

चलते जो तीर शब्दों के
भावों को भेद नहीं पाते है
अब अर्थ खो चुके अपने
नाहक संसद को सताते है

अच्छो को श्रेय ले बढ़ाते है
गलतियाँ दूसरे पर मढ़ते है
आदत है पड़ चुकी इनकी
पानी में आग लगाते है

आज़ाद परिंदे हम बेशक
है कभी हुआ करते थे
अब पंख तोड़ कर मेरे
उड़ने को हमसे कहते है

भौतिक दस्ता से मुक्त हुए
वर्षों हमको है बीत गए
मानसिक दंश गुलामी का
पर आज भी हम है झेल रहे

अन्ना लेकर आयें जब
तीव्र सत्यता की आधीं
प्रयास कर लिए जीभर कर
पर बन न पाए वो गाँधी

संतोष एक ही है हमको
हम आजाद हो चुके है
पीर कहे पर किससे अपनी
बस लाज ढो रहे रहे है

है साहस बचा है कितनो में
सच का साथ देने की
झुनझुना थमा कर हाथों में
कहतें है बात निभाने की

हो स्वतंत्र अपने ही देश में
दासता का जीवन जी ही रहे
पाते है जख्म रोज ही हम
दुखड़ा अपना कहने से रहे

पा चुके बेशक स्वराज है
पाना सुराज बाकी है अभी
इस बार चूक गए जो हम
मिले न वांछित लक्ष्य कभी

बना रहे पंद्रह अगस्त ही
बेशक पर्याय अपने स्वराज का
सोलह अगस्त को पड़ जाये
मजबूत नीव सच्चे सुराज का

आ मिले अन्ना से हाथ हम
रक्षा बांध शंखनाद करते है
दूसरी स्वतंत्रता की रणभेरी
हम आज ही से बजाते है

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