सोमवार, 29 अगस्त 2011


दीपू आज तो स्कूल बंद है
फिर इतना सुबह क्यों नहा रहे हो
स्कूल के लिए क्यों तैयार हो रहे हो
नहीं मम्मी आज अन्ना हजारे सर का
एक लम्बा जुलूस हमरे स्कूल से निकलना है
और मुझे उसमे तिरंगा लेकर
सबसे आगे चलना है

भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय फलक पर
एक विस्मयकारी आन्दोलन छिड़ चुकाहै
स्वतंत्रता आन्दोलन की एक झलक से
पूरा बदन सिहर गया है
पूरी अवाम एक सैलाब के रूप में
सडकों पर उतर चुकी है
बस रैलिया ही रैलिया दिखती है
एकजुटता के विराट और विहंगम नजरें
जिधर देखों उधर बस जुलूस की
शक्ल में मानवीय कतारें
आकंठ भ्रष्टाचार से सब ऊब चुके है
इसे जड़ से उखाड़ फेकने को
सभी व्यग्र दीख रहे है
पर अफ़सोस उसमे भी कुछ लोग
अपनी रोटियां सेक रहे है
तबियत से अपने बैनर संस्था और
स्कूल के प्रचार में लगे हुए है
वरना जुलूसों से क्या वास्ता
अपने विकास हेतु इन्हें बनाते क्यों रास्ता
प्रतिबन्ध के बावजूद भी इन मासूमों को
भीड़ जुटाने के लिए
घंटों धूप में दौड़ाया जाता है
बेहोश होने पर घर वालों को बुलाकर
चीनी नमक पानी का घोल देने की
नसीहत देकर अभिवाहकों को
सौप दिया जाता है
वजह भ्रष्टाचार के खिलाफ की लड़ाई में
अन्ना का हाथ बटाया जाना
बताया जाता है

मुझे अच्छी तरह याद है जब
पहली बार पिताजी मुझे मेरा नाम
लिखवाने स्कूल ले गए थे
प्रवेश शुल्क के नाम पर बस पांच रुपये
कक्षा एक में दिए थे
उसके बाद पूरे आठ वर्षों तक
कोई ऐसा शुल्क स्कूल द्वारा लिया गया नहीं
मैंने भी प्रवेश शुल्क के नाम पर कुछ
दिया हो याद नहीं
अभी कुछ वर्षों पहले तक भी
शुल्क किसी स्कूल में बस एक बार
प्रवेश के समय लिया जाता रहा है
पर अब तो हर कक्षा में हर बार
प्रवेश शुल्क माँगा जाता है
विकास शुल्क अभिवाहकों से लेकर
स्कूल का भवन बनवाया जाता है
बेचारा अभिवाहक इनका
चारा बना फिरता है
कोई विकल्प न पाकर अपना दुःख
किसी से नहीं कहता है

क्या यह भ्रष्टाचार कि श्रेणी में नहीं आता है
इस तरह अभिवाहकों का शोषण क्या
नहीं किया जाता है
वस्तुतः जहाँ से इस लड़ाई का
आगाज होना चाहिए था
वही आकंठ में डूबा भ्रष्टाचार
पहरेदार बना बैठा है
कौन समझाएं इन छद्म अन्नावादियों को
कि कमा ले चाहे जितने भी
हीरे और मोती
पर याद रखना किसी कफ़न में
जेब नहीं होती

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