कल की
अनचाही बातों
और
घटनाओं ने
मुझे रात में
बेचैन करने का
प्रयास किया
पर मैंने
हमेशा की तरह
एक बार फिर
अपने आप को
सर झटक कर
समझा लिया
ईश्वर को साक्ष्य
मान
दूसरे के अपराध
को भी
आत्मसात कर
लिया
चल पड़ा है
बौद्धिक आतंकवाद
का
यह सिलसिला
कि नीति हमेशा
छद्म शक्ति
का गुलाम
रहा
कुछ लोग स्वयं
को
सर्वशक्तिमान समझते
है
पर शायद उन्हें
पता नहीं कि
अति आत्मविश्वास
और
अति आत्ममुग्धता
के
अन्तस्तल में
ही
विनाश के बीज
पनपते है
एक स्याह
रात के उपरांत
ऊर्जावान प्रात
आसन्न होता है
तन मन प्रफुल्लित
और
प्रसन्न होता
है
जिसमे धैर्यवान
वीर्यवान
बुद्धिवान शीलवान
और विवेकी
व्यक्तित्व ही
फलता है
लम्बा रास्ता
तय करता है
तभी तो भौतिक
जीवन के उपरांत
भी
राम कृष्ण
और गांधी
को
समय सदियों
सहेजता है
पर उलट प्रवृत्ति
को
कौन याद रखता
है
अफ़सोस तब और
होता है
जब निरक्षरों
को कौन कहे
पढ़े लिखे लोग
विवेकहीन व्यक्ति
अपनी संस्कृति
का वास्ता
देकर
साइत और अपशकुन
की
बात करता है
वस्तुतः ऐसे
लोगो को
अपने कर्म पर
विश्वास नहीं
होता
भौतिक दांव पेंच
से अगर
कुछ पा लिया
तो
उसे खोने से
डरते है
दूसरे के कंधे
के भरोसे
आगे निकल कर
उस कंधे को
पीछे धकेल देते
है
बहुत दिनों
के बाद
माँ के स्पर्श
का
अनुभव मैंने
पाया
जब खिड़की
से आती
मंद पछुआ ने
मुझे जगाया
अपने शाश्वत
लक्ष्य पर
बढ़ने
निडर कर्मपथ
पर
चलने को सुझाया
याद आया
पापा ने एक
बार
सत्य ही कहा
था
कि कभी कभी
ऐसे दिन भी
अच्छे होते है
जो आत्ममंथन
के साथ
व्यक्ति के
जीवन को
पटरी पर रखने
का
काम करते है
निर्मेष
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